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भरतेश वैभव
करनेकी जरूरत नहीं है । तुम्हारी देवियाँ स्वयं सब व्यवस्था कर लेंगी, आज उसका विचार क्यों ? आगे समयपर देखा जायेगा ।
इतनेमें भरतेशकी पुत्रियाँ देवकन्याओंके समान शृंगारित होकर आ रही हैं। पाँचसी कन्याओंने आकर पिता के चरणों में प्रणाम किया । सबको सम्राट्ने आशीर्वाद दिया । भरतेश्वरने उनको नमिराज आदिको नमस्कार करनेके लिए कहा। कितनी ही कन्याओंने नमस्कार किया। कितनी ही लज्जा से भरतेश्वरके पास खड़ी रहीं । भरतेश्वर उन पुत्रियोंको आशीर्वाद देते हुए प्रेमसे कहने लगे कि बेटी ! तुम लोग अब वयमें आ गई हो। जल्दी वयमें आओगी तो तुमको यहाँ से भेजना होगा । तब हम लोगोंको पुत्री - वियोगके दुःखको सहन करना पड़ेगा । खैर ! कोई बात नहीं है । मेरी पुत्रियोंके लिए योग्य वर मौजूद हैं। वे इनको आनन्दित करेंगे। में सम्पत्तियों से उनको तृप्त कर दूंगा । भरतेश्वरके पास जितनी पुत्रियाँ खड़ी थीं वे लज्जासे उधर भाग गईं । सब लोगों के भागनेपर मधुराजी नामक छोटीसी कन्याने परदेकी आड़में खड़ी होकर कहा कि पिताजी ! अब आपकी तरफ हम लोग नहीं आयेंगी । कारण आपने हम लोगोंका सबके सामने अपमान किया है । तब भरतेश्वरने पूछा कि बेटी क्यों ? क्या बात हुई ? इतना गुस्सा क्यों ? तब मधुराजी कहने लगी कि छो ? जाने दो! तुमने सबके सामने हम लोगों का अपमान किया है। इस प्रकारके छिछोरपनेकी बात करना सम्राट् कहलानेवालेके लिए कभी शोभा नहीं देता ।
"बेटी ! मैंने क्या कहा ! तुम सबके लिए एक-एक पतिकी आदश्यकता है, इतना ही तो कहा और क्या कहा ? इसमें छिछोरपनेकी बात क्या हुई ।" भरतेश्वरने कहा।
मधुराजी - देखो पुनः वही बात ! लज्जासे मुख नीचे करती हुई कहने लगी कि छो ! पिताजी ! आप क्यों ऐसी बात कर रहे हैं ? सब लोग हँसते हैं । यहाँ अन्दर सभी बहिनें आपकी वृत्तिको देखकर हँस रही हैं। देखिये तो सही
तब भरतेश्वरने कहा कि वेटा ! जो मेरी वृत्तिपर हँसती है, उनके पास तू मत रह, मेरे पास आ जा । परन्तु वह नहीं आई । रतिचन्द्रा नामक दासीसे उसे लानेके लिए कहा । दासीने जबर्दस्ती उसे लाकर चक्रवर्ती को सौंपा। फिर भी सबके सामने लज्जासे मुँह ढँककर वह सम्राट्की गोदपर बैठी हुई है ।
भरतेश्वरने तरह-तरहसे उसे बुलवानेका प्रयत्न कर रहे हैं। परंतु