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________________ भरतेश वैभव स्त्रीरत्नसंभोग संधि विवाहकी सर्व तैयारियां हो चुकी हैं। करोड़ों प्रकारके गाजेबाजों के साथ कन्याने आकर विवाह मंडपमें प्रवेश किया । वहाँपर सुन्दर अलंकृत अक्षतवेदीपर आकर कन्या खड़ी है। अनेक विप्रजन मंगल मंत्र बोल रहे हैं । सम्राट् भी विवाहोचित बेषभूषासे युक्त होकर अपने परिवारके साथ आ रहे हैं। वहाँपर विवाह मण्डपमें प्रवेश कर अपने लिए निर्मित अक्षत वेदीपर वे खड़े हो । वर और वधुके बीच एक सुन्दर पर्दा है । द्विजोंने मंगलाष्टक पढ़ना प्रारम्भ किया। उत्तम मंत्रोंका उच्चारण करते हुये उन्होंने उन दम्पतियोंको मोतियोंका तिलक लगाया। मंगलाष्टक पूर्ण होनेके बाद मंगलकौशिक रागमें गायन करने लगे । तदनन्तर जब पलमंजरि रागमें गा रहे थे तब वह बीचका पर्दा एकदम अलग हुआ । नमि, विनमि व सिन्धुदेव, गंगादेव ने सुभद्रादेवीसे पुष्पमाला डालनेके लिये कहा। तदनुसार सुभद्रादेवीने सम्राट्क्के गले में माला डाल दी। उस समय सम्राटको इतना हर्ष हुआ कि मानो तीन लोकका भाग्य ही उनके गलेमें आ गया हो । सम्राट स्वभावसेही सुन्दर हैं। उसमें भी देवलोकके वस्त्राभरणोंको उन्होंने धारण 'किया है जब उनके गले में पुष्पमाला आई उसका वर्णन फिर क्या करें। चारों भाइयोंने मिलकर सुभद्रादेवीके हाघको सम्राटके हाथसे 'मिलाया । तब मधुवाणी विनोदसे कहने लगी कि नमिराज ! तुम बड़े आदमी हो, तुम तो समझ रहे थे कि तुम्हारी बहिनके हाथ पकड़नेवाला कोई नहीं है। अब हमारे भरतेश्वरके साथ हाथ क्यों मिलवा रहे हो । उस समय सम्राट हँसे। नमिराज भी थोड़ा लज्जित हआ। धीरेसे उसने एक रत्नहारको निकालकर मधुवाणीके हाथमें रखा व कहने लगा कि चुप रहो, बोलो मत । सर्व प्रकारसे योग्य विधानके साथ विवाह हुआ। ५६ देशके राजा वहाँपर सम्राट्के विवाहके लिये उपस्थित थे । उस विवाहका कहाँतक वर्णन किया जाय । विवाह विधिसे निवृत्त होकर भरतेश्वर राजमहल में प्रविष्ट हुए । दरवाजे में सिन्धुदेवी गंगादेवी खड़ी हैं। कहने लगी कि भाई ! तुम हमारे घरपर बिना पूछे किस कन्याको ले आये हो । अब हम अन्दर नहीं जाने देंगी। पहिले यह कन्या हमें जीत ले, बादमें हमें उसे अन्दर जाने देंगे। फिर विनोदसे सुभद्राकुमारीसे पूछने लगी कि लड़की ! तुम्हारा नाम क्या है ? कहाँसे आई है। अपने समस्त
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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