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________________ भरतेश वैभव ३३३ दूसरे किसीसे भी नहीं बोलेगी, इसलिए मौनसे बैठी है। अच्छा ! हम जाकर भाईसे बोल देंगी। तब यशोभद्राने कहा कि जानेदो जी ! तुम्हारे भाई व तुमको यह कन्या कैसे जीत सकती है। इसलिए व्यर्थ ही उसे क्यों बुलवानेका प्रयत्न आप लोग कर रही हैं ? तुम्हारे भाई इस लोक में सर्वश्रेष्ठ हैं और आप लोग देवस्त्रियां हैं। आप लोगोंको बातोंसे कौन जीत सकते हैं : सलिए मा लोग गरी मारने का प्रेस मिलती रहें यही हमें चाहिए । इस प्रकार विनयविलास कर वे दोनों बहिने जाने के लिए निकलीं। जाते समय दोनों बहिनोंने सुभद्राकुमारीकी अंगूठी देखने के लिए चाहनेपर उसने सहज ही निकालकर दी। तब वे दोनों कहने लगी कि इसे तुम्हारे प्रेमचिह्न के रूप में ले जाकर हम अपने भाईको देंगी। तब दोनों को अपनी दोनों हाथोंसे धरकर बैठा दिया । सचमुच उसकी शक्ति अपार थी। लोककी समस्त स्त्रियोंके मिलनेपर भी चक्रवर्तीको स्त्रीरत्नके सिवाय संतोष नहीं होता है। यह सुभद्रा स्त्रीरत्न है। शक्तिमें फिर उसकी बराबरी कौन कर सकते हैं ? उसने उन देवांगनाओंके हाथसे अंगूठी छीन ली। उसकी सामर्थ्यको देखकर उन देवियोंको भी आश्चर्य हुआ। उत्तरमें उन्होंने कहा कि कुमारी ! अपने घरमें तुम इतनी शक्तिको दिखला रही हो । अंब अच्छा ! हमारे भाईके महलमें आओ ! वहाँपर देखेंगे तुम्हारी सामर्थ्य कितनी है ? इस प्रकार विनोद वार्तालाप करती हुई जानेके लिए निकली। तब यशोभद्रादेवीने अनेक मंगल पदार्थों को देकर उनका सत्कार किया। ___ वहाँसे निकलकर दोनों देवियाँ भाईके पास गई, वहाँ जाकर उन्होंने सुभद्राकुमारीकी बड़ी प्रशंसा की । भाई ! उसका रूप, शृङ्गार व गांभीर्य आदिको देखकर हम दंग रह गई। उत्तरमें भरतेश्वर कहने लगे कि न मालम आप व्यर्थ प्रशंसा क्यों कर रही हैं ? तब देवियोंने कहा कि भाई ! इसमें बिलकुल संदेह नहीं है। वह स्त्रियोंमें रत्नके समान है। उसकी सामर्थ्य अपार है । भाई ! हम लोगोंका चित्त प्रसन्न हुआ। यह बड़ा भारी समारम्भ है । ऐसे समयमें मातुश्री भी रहतीं तो बड़ा आनंद होता | उत्तरमें भरतेश्वर कहने लगे कि बहिन ! मैं भी यही सोच रहा था। माताजीको इस समय विमान भेजकर बुलवा लेता । परन्तु उसमें एक विघ्न है। माताजीको बुलाते समय छोटी माँ सुनंदादेवीको भी बुलाना चाहिए। उनका भी माना जरूरी है। परन्तु बाहुबलि उनको भेजनेके लिये मंजूर नहीं करेगा। क्योंकि मेरे
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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