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First ... REA TMAL ३२८
भरतेश वैभव तदनन्तर भरतेश्वरने द्विगुणित रूपसे आगत बन्धुओंका सन्मान किया । नमिंगजको भी उसी प्रकार उपहार दिये।। ___बुद्धिमागग्ने प्रार्थना की कि स्वामिन् ! कलके रोज हम लोग विवाह-मंगलके आनन्दको मनायेंगे | आज इन सबको विश्रालिकी आजा होनी चाहिये । तदनुसार भरतेश्वरने सबको दरबारसे विदा किया। सबको जानेके लिये इशारा करके स्वयं भी महलकी ओर रवाना हुए। चक्रवर्तीकि कुछ दूर जानेके बाद एक दामीने आकर कानमें कहा कि स्वामिन् ! नमिराज अकेले ही आये हैं। उनकी देवियोंको वहीं पर छोड़कर आये हैं । मम्राट् वहीं ठहर गये व नमिराजको अकेला ही आनेके लिए इशारा करनेगर वह अकेला ही पाममें आया । बाकीके नौकर-चाकार मन दूर चले गार। सम्राट्ने नमिराजके कानमें कहा कि नमिराज ! तुम यहाँपर आये, मौ बहुत अच्छा हुआ । परन्तु तुम्हारी स्त्रियोंको तुम अपने गांवमें ही रखकर आये यह ठीक नहीं है उत्तरमें नमिराजने कहा कि माताजी आई हैं। बहनको लेकर आया ही हूँ | फिर उनकी क्या आवश्यकता है ? इसलिए छोड़कर आया हूँ। आपको किस वैभवकी कमी है।
भरतेश्वर कहने लगे कि तुम व्यर्थकी बहानाबाजी मेरे साथ मत करो । मेरी बहिनोंको मुझे देखने की इच्छा हो रही है। उनके आये बिना विवाहमें शोभा ही नहीं है नमिराजने थोड़ा संकोच किया । पुनः सम्राट् कहने लगे कि नमिराज ! इस प्रकार भेदभावसे क्यों विचार करते हो ? मेरी बहिनोंसे मुझे मिलना ही है। आज ही रात्रिको उन्हें बुलवा लंगा । तुम यहाँपर आये । मामीजी आ गई। अब केवल मेरी बहिनें वहाँ पर रह गई। उनके मन में न मालम क्या विचार उत्पन्न होता होगा। मन में कितना दुःख होता होगा। हमारी स्त्रियोंसे वे दो दिनके लिए मिलकर प्रसन्न हो जाती। स्त्रियोंको ऐसे कामोंमें बड़ा सन्तोष रहता है। इसलिये जरूर बुलवाओ। इतना कहकर सम्राट महलकी ओर चले गये। नमिराजको महलको पहिलेसे म्राट्ने भोगोपभोग सामग्रीको भर दिया था। चक्रवर्तीने महल में जाकर भोजन किया । नमिराज भी भोजनादि क्रियासे निवृत्त हुए। इस प्रकार वह दिन सुखसे व्यतीत हुआ।
पाठक देखें कि नमिराज चक्रवर्तीके पास आनेके लिए संकोच करता था। अभिमानसे अपनी बहिनको सम्राट्को देनेके लिए भी तैयार नहीं पा । परन्तु सम्राट् पुण्यशाली हैं। उनके सातिशय पुण्यके