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भरतेश वैभव स्थानकी शोभाको आश्चर्यके साथ देखते हुए अंदर प्रवेश किया । जयंतांकने विवाहके निमित्तसे उस समय सेनास्थानको स्वर्गपुरीके समान अलंकृत किया था। भरतेश्वरने उनके साथ सरस वार्तालाप करनेके बाद उनको देवोचित महलमें विधान्तिके लिये भेजा। गंगादेव सिंधुदेवने यह कहते हये कि आपको किसी बातकी कमी नहीं है, तथापि हमलोगोंकी भक्ति है कि विवाहके समय इन उत्तमोत्तम वस्त्राभरणोंको धारण करें, भरतेश्वरको अनेक वस्त्र ब रलाभरणोंको भेंटमें दिये। मश्वरने, संतोष ताहा निःपाः (1 |न्तर उनको उनके लिए निर्मित मलमें भेजकर, उनकी महलमें उत्तम वस्तुओंको भेजनेके लिये जयंतांकको सूचना दी गई। तदनन्तर गंगादेवी व सिंधुदेवी भी उनके योग्य महलमें गई। क्योंकि वे देवियाँ थीं, मानवीय स्त्रियां होती तो भाईके महल में ही रहती। उनको भी यथेष्ठ वस्त्राभरणादि उपहार भेजे गये। __ वह दिन आनन्दके साथ व्यतीत हुआ। रात्रिके समय बुद्धिसागर मंत्री अनेक गाजेबाजेके साथ आया व चक्रवर्तीको भक्तिसे नमस्कार किया। बुद्धिसागरके साथ गये हुए बहुतसे व्यंतर राजा व विद्याधर राजा थे। उन सबसे सम्राटने कुशल प्रश्न किया। मागधामर, प्रभासांक, हिमवंत आदिका उन्होंने नामोच्चारण करते हुए उनका कुशल समाचार पूछा एवं उन लोगोंको अनेक वस्त्राभरण प्रदान किए। उस समय सब लोगोंने भरतेश्वरको हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि स्वामिन् ! हम लोग कुछ निवेदन करना चाहते हैं। यह स्वीकार होना चाहिए। भरतेश्वर विचार में पड़ गये कि ये क्या कहने वाले होंगे। कुछ भी हो, ये मेरे अहितके नहीं कहेंगे। फिर क्या हर्ज है । फिर उनसे कहने लगे कि अच्छा ! क्या कहना चाहते हैं ? कहिये, मैं अवश्य सुनंगा।
स्वामिन् ! और कुछ नहीं, वह नमिराज बहुत मानी है। वह यहाँ आनेके लिये तैयार नहीं था। परन्तु हम लोगोंने किसी तरह मनाकर . उसे मंजूर कराया है। परन्तु आप उसे नमिराजके नामसे संबोधन । करें। वह चाहता था कि आप उसके साथ 'आप' शब्दके साथ बोलें। । परन्तु हम लोगोंने उसे स्वीकार नहीं किया। केवल नमिराज शब्दसे : संबोधन करना मंजूर किया है। इसे आप स्वीकार करें। आपके मामा- : के पुत्रके लिए यह सन्मान रहने दीजियेगा। नमिराजके स्वाभिमानको . देखकर भरतेश्वरको मनमें प्रसन्नता हुई सचमुच में नमिराजके हृदयमें