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________________ ३१६ भरतेश वैभव मय दृष्टिसे उनकी तरफ देखा। दक्षिण व पूर्व खंडके राजा उद्दण्ड व वेतंड राजा हैं। इसी प्रकार आर्याखण्डके सूर्यवंशादि उत्तम वंशोंमें उत्पन्न इन छप्पन देशके राजाओंको एवं उनके राजपुत्रोंको आप देखें । राजन् ! इधर देखिये ! ये दक्षिणोत्तर श्रेणीके विद्याधर हैं । इसी प्रकार दक्षिणनायक, शठनायक आदि चक्रवर्तीके मित्रोंको भी देखें। संख्या में आठ होनेपर भी चक्रवर्तीको अष्टांगके समान रहते हैं । ये चक्रवर्तीके परमभक्त हैं । बुद्धिसागर मंत्री के अनुकूल है । लोकमें अद्वितीय बुद्धिमान है। यह सुनकर नमिराजने उनको अपने पास बुला लिया। सबको यथा योग्य आसन प्रदानकर बैठने के लिए कहा । बुद्धिसागर मंत्रीको अपने सिंहासनके पास ही आसन दिया । बुद्धिसागरसे बोलते हुए कहा कि मंत्री ! ये राजा व्यंतरेन्द्र वगैरह सामान्य नहीं हैं | अहो 'जिनसिद्ध' भरतेश्वरकी सम्पत्ति बहुत बढ़ी हुई है । इन एकेक व्यन्तर व राजाओंको देखते हुए एकेक पर्वतके समान मालूम होते हैं। फिर इनके बीच में न मालूम वह भरतेश्वर किस प्रकार मालूम होगा। कहाँ अयोध्या ? व कहाँ हिमवान् पर्वत ? इन दोनोंके बीचके षट्खण्डोंको वश में करनेके भाग्यको भरतेश्वरके समान कौन प्राप्त कर सकते हैं ? उसके लिए पूर्व पुण्यको आवश्यकता है। रानमुप उनका मान्य महान है। उसको बराबरी करनेवाले लोकमें कौन हैं ! श्री जिनेन्द्र ही जाने। बुद्धिसागर मंत्रीने कहा कि राजन् ! आप ठीक कहते हैं । आपके बहिनोंका भाग्य असदृश है । आपको हर्ष होना साहजिक है । भरतकी केवल सम्पत्ति ही बढ़ी है ऐसी बात नहीं। उसकी बुद्धिमत्ता, सुन्दरता, शृङ्गार व वीरता आदि बातोंको देखकर देवलोक भी मस्तक झुकाता है। क्या तुम्हारा बहनोई इस नरलोकका राजा है ? नहीं, सुरलोकका है। राजन् ! पुरुषोंमें उसकी बराबरी करनेवाले दूसरे कोई नहीं हैं। स्त्रियों में तुम्हारी बहिन सुभद्राकी बराबरी करनेवाले कोई नहीं हैं। ऐसी हालतमें उन दोनोंका सम्बन्ध करानेका तुमने जो विचार किया है यह कर्म बुद्धिमत्ताकी बात नहीं है। अपनी पितृपरम्परासे आये हुये स्नेह सम्बन्धको न भूलकर उसे बराबर चलानेका विचार तुमने जो किया है, वह स्तुत्य है । नमिराज ! ऐसी हालतमें तुम्हारी समानता कौन कर सकते हैं। नमिराजने कहा कि मंत्री ! मैंने क्या किया ! भरतेशके पुण्यने ही मुझे इस कार्यके लिए प्रेरणा की। उस बातको सभी राजाओंके समाने रखने की इच्छा हुई। ये सब राजागण हमारे बन्धु हैं । परन्तु ये मुलाने
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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