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करतेश बै
बोलनेके लिए डरते हैं, नहीं बोलनेसे काम बिगड़ता है। इसलिए बोलना ही पड़ता है। जब लोकमें सब राजागण उनको अपनी कन्याओंको समर्पण करते हैं तब आप उनको अपने नगरमें बुलाते हैं, क्या यह योग्य है ? उनके समान आपको भी देना चाहिये। क्या वे क्षत्रिय नहीं हैं ? परन्तु सम्राट्के सामने गर्व दिखानेके लिए वे घबराये । अतएव उन्होंने अपनी कन्याओंको वहां ले जाकर विवाह कर दिया। उनके राज्यमें रहते हुए हम लोगोंका इस प्रकार बोलना क्या उचित हो सकता है ? आपके भाई व मंत्रीके साथ उस दिन भरतेश्वर क्या बोल रहे थे, उस बातको क्या भूल गये ? इसलिए यही अच्छा है कि आप अपनी कन्याको सम्राट्के पास ले जाकर देखें।
नमिराजको क्रोध आया। कहने लगा कि ठीक है ! उन राजाओंको अपना गौरव, मानहानिकी कीमत मालूम नहीं। अतएव उन्होंने अपनी कन्याओंको ले जाकर सम्राटको समर्पण किया। परन्तु मैं वैसा नहीं कर सकता। मेरे भाई व मंत्रीके साथ बोला तो क्या हुआ। वह क्या करेगा सो देखा जायगा। मैं जानता हूँ कि आवर्तराजको राज्यसे निकालकर उसने उसके भाई माधवको राज्यपर बैठा दिया। यह सब मुझे डराने के लिए किया है। परन्तु मैं ऐसी बातोंसे डरनेवाला नहीं हैं। दोनों श्रेणियोंके राजाओंको मैंने भेजा। उसके आते ही भेंटके साथ मेरे भाई व मंत्रीको भेजा 1 अब मेरा क्या दोष है ? यह क्या करेगा देखूगा। जब बन्धुओंने देखा कि नमिराजको हम लोग समझा नहीं सकते, तब उन्होंने इस समाचारको नमिराजकी माता यशोभद्रासे कहा । यशोभद्राने नमिराजको बुलवाया ! नमिराज भी अपनी माता की महलमें पहुंचे। "बेटा ! मैंने सुना है कि भरतेश्वरके प्रति तुम बहुत गर्व दिखा रहे हो, यह ठीक नहीं है। उसे देनेके लिए जो कन्या पाल पोसकर बढ़ाई गई है, यह उसे ही देनी चाहिए। इसमें उपेक्षा दिखानेकी क्या जरूरत है ?" माता यशोभद्राने कहा । उत्तरमें नामिराज कहने लगा कि माताजी ! मैंने कन्या देनेके लिए इन्कार नहीं किया है। भरतेश षट्खंडाधिपति हुआ, इस गवसे कन्या लेना चाहे तो मैं मंजूर कैसे कर सकता हूँ? पहिले सगाई वगैरहकी विधि होनेके बाद कन्याके घरमें आकर पाणिग्रहण करना, यह रीत है, परन्तु भरत यह नहीं चाहता है। वहाँ ले जाकर देना मुझे पसंद नहीं है । मंत्री विनमि आदि भी भरतेशके पास ले आकर कन्या देनेके लिए कहते हैं। परन्तु मैंने