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________________ मोक्षाग्रगुरु हसनाथ ( परमात्मा ) इस प्रकार उल्लेख किया है । देवचन्द्रने अपने ग्रन्थमें इस कविका उल्लेख करते हुए लिखा है कि यह कर्नाटकके सुप्रसिस क्षेत्र मूडबिद्रीके सूर्यवंश के राजा देवराजला मात्र एई मा नाम इलाहार रखा गया । शेष उपाधियां उसके शादकी अवस्था को है। रत्नाकर बाल्यकाल में ही काव्यालंकार शास्त्र में अत्यन्त प्रवीण था एवं सारप्रय टीका, कुन्दकुन्दके अन्य, समाधिशतक, समयसार, योगरत्नाकर, नियमसार, आध्यात्मसार, स्वरूपसंबोधन, इष्टोपदेश आदि अन्योंको मननपूर्वक अभ्यासकर उस देशके भैरव राजाके परपारमें प्रसिद्ध विद्वान् पा । उसको लोकमें सबसे अधिक "निरंजनसिन और विवम्बरपुरुष" पर प्रेम था । इसे श्रृंगारफवि नामकी भी उपाधि प्राप्त थी। रत्नाकर भैरवराजाका दरबारी कवि था। इसकी विज्ञप्ताको देखकर राजकन्या मोहित हो गई । रत्नाकर भी उसके मोहपाश में आ गया । बह उसपर आसक्त होकर शरीरके वायुओंको वश में करके, वायुनिरोधयोगके बलसे महल में अवृक्ष्य पाहुँचकर उस राजपुत्रीके साथ प्रेम करता था। यह बात धीरे-धीरे राजा. को मालूम होनेपर राजाने उसे पकड़ने का प्रयत्न किया । उस दिन रत्नाकरने अपने गुरु महेंद्र कीलिसे पंचाणुव्रतको लेकर अध्यात्मतस्वमें अपने आत्माको लगाने को प्रारम्भ किया । उसी समय भट्टारकजीके शिष्य बिजयण्णाने एक द्वावशानुप्रेक्षा नामक ग्रंथकी संगीत में रचना की थी, जिसका बहुत आदर के साथ हाथीके ऊपर जुलूस निकाला गया। तब रत्नाकरने अपने भरतेशवभक्को भी हाधीके ऊपर रखकर जुलूस निकालनेके लिए भट्टारकजीसे प्रार्थना की । तब भट्टारकजीने कहा कि उसमें दो तीन शास्त्रविश्व दोष है । इसलिए वैसा नहीं कर सकते हैं। सब रत्नाकरने इस विषयपर उनसे आग्रह किया एवं कुछ अमबमसा हुआ तो उन्होंने ७०० परफे श्रावकों को कड़ी आज्ञा दे दी कि इस रस्नाकरको कहीं भी आहार नहीं दिया जाय । तब रत्नाकर अपनी बहिनके घरमें भोजन करते हुए, जिन धर्मसे रुसकर 'आत्मज्ञानिको सभी जाति कुल बराबर है' ऐसा समझकर गले में लिंग बांधकर लिगायत बन गया । वहाँपर वीरशवपुराण, बसवपुराण, सोमेश्वरशासक आदिकी रचना की। कविक विषयमें और एक कथा सुनने में आती है। रस्नाकर बाल्यकाल में ही पैराग्यको प्राप्त कर चास्कोतियोगीसे वीक्षा लेकर योगाभ्यास करता था। प्रातःकाल उठते ही अपने साथीदारों को एवं शिष्योंको उपवेषा वेता मा । दिनपर दिम उसके शिष्यवर्गकी वृद्धि होती जाती थी । कुछ लोग उसके प्रभावको देखकर इससे बलते थे। उन लोगोंने एक दिन प्रातःकाल होने पहिले रस्साकरले पलंग
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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