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भरतेश वैभव
२८१ होने के बाद, मंगलविवाह होनेके बाद यह सब वृतांत विनमिने कहा । देखो ! क्या बुद्धिमत्ता है ? मुभद्रादेवी के साथ शिवाह कार लेकी इच्छा है। उसके प्रति मोह है। परन्तु अपने मुखसे उसे न कहकर उसे अनायास पानेके मार्गको तैयार कर रहे हैं । कमाल है ! इतने में कृतमाल आया। जयकुमारने आकर प्रार्थना की कि स्वामिनु आगे की आज्ञा होनी चाहिये । सम्राट्ने भद्रमुत्रको बुलवाकर कहा कि यह कृतमाल तमिस्रगुफाके अधिपति हैं। इमनी भाथ जाकर उत्तरको और जानेके लिये मार्ग तयार करो। नदनंतर हम यहाँ से आगे प्रस्थान करेंगे। पानीकी खाईको निकालकर वनकवाटको फोड़ा और गुफाके अंधकारको मिटानेके लिये काकिगीरत्नकी प्रभासे काम लेना । मुफा के बीच में मिन्धनदी दक्षिणमुख होकर वह रही है। साथ में पूर्व व पश्चिममें दो भयंकर नदियाँ आकर मिल गई हैं। पश्चिमसे निमग्न
और पूर्व से उन्मग्न नामक नदी भयंकर तरंगोंके साथ आ रही हैं। निमग्न तो उसमें जो भी पड़ते हैं उनको पातालको ले जाती है और उन्मग्न गेंदके समान आकाश में उड़ा देती है। इमलिये होशियारीसे जाना। सभी नदियोंको चर्मरत्नसे पार कर सकते हैं, परन्तु इनको पार करना नहीं हो सकता है । इसलिए आवश्यकता पड़े तो उन दोनों नदियोंपर पुल बाँधना चाहिए। पानीको स्पर्श न कर ऊपर से ही पुल बाँधना चाहिए। इस कामके लिए भूचरियोंसे काम नहीं चल सकता । अंबरचर व्यंतरों से ही यह काम हो सकेगा। फिर उस तरफ जाकर उत्तर दिशाकी ओरके कपाटको फोड़कर निकालें और मारे आनेतक कृतमाल सेनाको लेकर वहींपर रहें। पुल बाँधनेका काम भद्रमुखका है। गुफाके संरक्षणका कार्य कृतमाल करे और खाई बनवाकर अंतके कपाटको फोड़नेका काम जयकुमार करें । इस प्रकार तीनोंको काम सौंप दिया और व्यंतरश्रेष्ठोंको बुलाकर उनको मददके लिए उनके साथ जानेको कहा । बुद्धिमागर सम्राट्के ज्ञानको देखकर आश्चर्यचकित हुआ। उसने कहा कि स्वामिन् ! आपने पहिले देखा ही हो जिस प्रकार वर्णन किया । आपका ज्ञान सातिशय है। भरनेश्वरने कहा कि बुद्धिसागर ! वहाँ जाकर देखने की क्या आवश्यकता है, इसमें क्या आश्चर्यकी बात है ? जैनशास्त्रोंका स्वाध्याय करनेवाले इस बातको अच्छी तरह जान सकते हैं। तुम भी तो उसको जानते हो। बुद्धिसागरने कहा कि स्वामिन् ! हम जानते तो जरूर हैं, परन्तु उसी समय भूल जाते हैं। परन्तु आपकी धारणाशक्ति