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भरतेश वैभव
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ये सज्जन हैं । परन्तु इनमें मुख्य उद्दंड नामक भूपति है । ये अपनी दो कन्याओं को लेकर आये हुए हैं। मैंने इनसे कहा कि कलकी रात्रिको विवाह के लिये योग्य मुहूर्त है, आशा है कि आप लोग भी इसे स्वीकार करेंगे | उपस्थित सब लोगोंने उसका समर्थन किया। उस समय भरतेश्वरने सबको आदरसत्कारपूर्वक विदा किया। बह दिन गया। दूसरे दिन योग्य मुहूर्त में उन राजाओंकी तीन सौ बीस कन्याओं के साथ सम्राट्का विवाह सम्पर्व ही हो रहा है। इसके बाद सम्राट् उन नवविवाहित वधुओंके साथ शयन गृहमें गये । वहाँ उनके साथ अनेक प्रकारसे आनन्द क्रीड़ा की । उन स्त्रियोंमें सभी स्त्रियाँ एकसे एक बढ़कर सुन्दरी थीं, परन्तु उनमें रंगाणि और गंगाणि दो स्त्रियाँ अत्यधिक सुन्दरी थीं, जिनको देखनेपर भरतेश भी एक दफे मोहित हुए।
प्रातःकाल नित्यक्रियासे निवृत्त होकर विजयराज आदि को लेकर सर्व परिजनों को आनन्द भोजन कराकर सत्कार किया। कुछ समय तक बहुत सुखसे समय व्यतीत हुआ । पुनः एक दिन दरबार में विराजमान थे उस समय एक और आनन्दका समाचार आया जयराज पूर्वखण्डकी ओर गया था. उस खंडको जीतकर वह बहुत आनन्दसे गाजे बाजे के साथ आ रहा है। दूसरे मंगल शब्द भी सुननेमें आ रहे हैं । उसके साथ असंख्यात सेना है । हाथी है, घोड़ा है, रथ है, एक राजकीय ठाटबाटसे ही वह आ रहा है। सचमुच में जयराज एक राजाधिराज है। दुनियामें भरतेश्वरका ही सेवक है। बाकी और कोई राजा ऐसे नहीं जो उसे जीत सकें । वह जातिक्षत्रिय है । जाते समय जितनी सेनाको वह ले गया था उससे दुगुनी सेनाको अब साथ लेकर उस स्थान में दाखिल हुआ 1
जिन राजाओंने चक्रवर्तीको समर्पण करनेके लिए उत्तमोत्तम हाथी घोड़ा वगैरह ले आये थे, उनको व उनकी सेनाको एक तरफ स्थान दिया और जो कन्यारत्नों को ले आये थे, उनको एक तरफ स्थान दिया | वेतंड नामक भूपति अपने साथ सुन्दरी दो कन्याओंको ले आया है। उसके साथ ही अन्य ४०० कन्यायें भी आई हैं। अपने खण्डसे जिस 1/ समय उन्होंने कर्मभूमिमें प्रवेश किया उस समय गुरुसनिधिमें नियमव्रतोंको ग्रहण कराये । क्योंकि जयराज बुद्धिमान् है, उसे मालूम था कि सम्राट् व्रतसंस्कारहीन कन्याओंको ग्रहण नहीं करेंगे। विशेष क्या कहें ? पूर्वोक्त प्रकारसे जयकुमार सम्राट्के पास गये । सम्राट्का उन