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भरतेश वैभव
२६५ को धारण कराकर उन्हें विवाहकलोचित सर्व अलंकारों से अलंकृत किया।
लोकमें भरतेश्वर बुद्धिमान हैं यह सब जानते थे। साथमें वह कामदेव के समान ही सुन्दर है यह जगजाहिर था। ऐसी अवस्थामें, भरतेश्वर भी प्रसन्न हो सके इसे दृष्टिकोणमें रखकर उन चतुरदासियोंने उन विद्याधर कन्याओंको विविध प्रकारसे अलंकृत किया। भरतेश्वरकी रानियाँ भी महा बुद्धिमती हैं | वे भी आज इन नब-धुओंको देखेंगी, वे भी प्रसन्न हो जाय इसी प्रकार उनका शृङ्गार हुआ । सब शृङ्गार होने के बाद स्वयं ही अपने द्वारा किये हुए शृङ्गारको देखकर वे दासियाँ प्रमान हुई और विनोदसे कहने लगी कि देवी ! आजतक भूचर स्त्रियोंने भरतेश्वरके चित्त व नेत्रको प्रसन्न कर जो उनके हृदयको वश किया उसे आप खेचर स्त्रियाँ अपने सौंदर्य व प्रेममय व्यवहार से भला देवें । उन कन्याओंने भी सुन लिया। पहिलेसे भरतेश्वरके जगद्विश्रत गुणों को जानती थीं। इसलिये मन में विचार करने लगी कि भरतेश्वरको जीतनेवाली स्त्रियाँ लोकमें कोई नहीं है। ऐसी अवस्थामें यह सब विचार व्यर्थ है । तथापि हम लोग पतिके अनुकूल वृत्तिको धारण कर रहेगी। इस प्रकार सर्व शृङ्गार पूर्ण होने के बाद दासियोंने उन कन्याओंकी आरती उतारी और "भरतेश्वर के मनको आप लोग प्रसन्न करें" इस प्रकार आशीर्वाद दिया। रात्रिके प्रथम प्रहरमें जब चक्रवर्तीके सेवकोंने आकर सब विद्याधर राजाओंको यह समाचार दिया कि अब विवाहका मुहूर्त अतिनिकट है, सभी राजा अपने-अपने विवाहके लिये सुसज्जित कन्याओंको पालकियोंपर चढ़ाकर गाजेबाजेके साथ विवाहमण्डपकी ओर गये । उस समय सेनानायकने भी अपनी सेना व परिवारके साथ इन राजाओंका स्वागत सामनेसे आकर किया। इस प्रकार बहुत आनन्दके साथ सभी विवाहमण्डपमें प्रविष्ट हुए। तीन सौ कन्याओंने तीन सौ खास निर्मित मण्डपोंको सुशोभित किया । साथकी स्त्रियाँ अनेक प्रकारसे सुन्दर मंगल गान कर रही हैं । वे कन्यायें मंडपमें खड़ी होकर भरतेश्वरका ध्यान कर रही हैं और उनके आगमनकी प्रतीक्षा कर रही हैं । परन्तु भरतेश्वर जल्दी नहीं आ रहे हैं।
इधर भरतेश्वरने भी विवाहोचित शृङ्गार कर लिया और समय समीप आते ही जिनेन्द्र मन्दिरमें गये वहांपर भक्तिपूर्वक जिनेन्द्रनन्दना की । परमहंस गुरु परमात्माका भी स्मरण किया । तदनन्तर आनन्दके