________________
२५४
भरतेश वैभव
विख्यात् कार्य में सफलता पाकर आ रहे हैं । ऐसी अवस्थामें उनको आनंद होना साहजिक है। वे सब मिलकर भरतेश्वरके स्वागतके लिए आ रही हैं । उनके हाथमें मंगल आरती है । भरतेश्वरके चरणोंमें भक्ति से नमस्कारकर भरतेश्वरकी उन रानियोंने आरती उतारी। इतने में इसके बच्चे के समान सुन्दर हंसराज आदि पांच पुत्रोंने आकर भरतेश्वरके चरणों में नमस्कार किया । उस समय श्वरको विशाला आनंद हुआ होगा । इस प्रकार सर्वत्र आनंद ही आनंद हो रहा है । राजमहल उस समय आनंदध्वनिसे गूंज रहा है । भरतेश्वरने स्नान, देवार्चन, भोजन आदि नित्यक्रियाओंसे निवृत्त होकर उस दिन महलमें अपने कपाट विस्फोटनकी लीला वृत्तांतको अपनी प्रियस्त्रियोंको कहते हुए अपना समय बहुत आनंदके साथ व्यतीत किया ।
भरतेश्वरका पुण्य अतुल है । जहाँ जाते हैं वहींपर उन्हें सफलता मिलती है। विजयार्ध पर्वत पर स्थित वज्रकपाट जो कि सर्व साधारणके द्वारा उद्घाटनीय नहीं है, उसे भी भरतेश्वरने क्षणमात्रमें फोड़कर रख दिया, यह किस बातकी सामर्थ्य है । उनकी आत्मभावनाका फल है । वे प्रतिनित्य भावना करते हैं कि :
हे सिद्धात्मन् ! आप ध्यानरूपी दण्डरत्नसे कठोर कर्मरूपी वज्रकपाटको तोड़नेवाले धीरोदत्त हैं । इसलिए हे स्वामिन्! आप सम्पूर्ण प्राणियोंके दुःखको दूर करनेवाले हैं। इसलिए हमें सम्मति दीजियेगा ।
हे परमात्मन् ! मिध्यात्वरूपी कपाटकी फोड़कर उत्तुंग धैर्य के साथ मोक्षकी ओर जानेवाले आप चित्तसंधानी हैं। आप मेरी संपत्ति हैं । इसलिए मेरे हृदय में बने रहें ।
इसी प्रकारकी शुभभावनासे ही भरतेश्वरको सर्व अतिबल महाबलापेक्ष कार्यों में भी सफलता मिलती है ।
इति कपाटविस्फोटन संधि
11811
कुमारविनोद संधि
दूसरे दिन सम्राट्ने जयकुमार व उसके भाईको महलमें बुलाकर उनको कुछ काम सौंप दिया । जयकुमार ! अग्निका वेग कम होनेके लिये करीब करीब छह महीनेकी अवधि लगेगी। इसलिये तबतक सेना