SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५० भरतेश वैभव घोडेको चलने के लिये इशारा किया, घोड़ा आगे बढ़ा। भरतेश्वरने सेनाकी ओर उस घोड़ेको चलाते हुए लय, धारा, गति, जब, भ्रामक नामक पाँच प्रकारकी चालोंसे अश्वविद्याका प्रदर्शन किया। अनेक तरह से धोड़ा अपनी पारी बाला रहा है । 'एक-एक दफे तो वह कितने ही योजनोंतक छलांग मारे परन्तु भरतेश्वर बराबर अचलरूपसे बैठे हुए हैं। घोड़ा अव सेना स्थानको छोड़कर पर्वतकी ओर चला गया, अब सेनापति व सेना सब उमी स्थान में रह गये। भरतेश्वरके साथमें जो नियत गणबद्ध देव मौजूद हैं, वे और मागधामर आदि व्यन्तर हैं वे रुक न सके । वे साथ ही आ गये । कुछ लोग ऐसा वर्णन करते हैं कि भरतश्वरने जयकुमार जो सेनापति रत्न है, उसे भेजकर उसके हाथसे वज्रकपाटका विस्फोटन कराया। परन्तु यह ठीक नहीं है । चक्रवर्तियोंको अश्वरत्न, गजरल आदि स्त्रीरत्न के समान है, उन रत्नोंका उपभोग वे स्वतःही कर सकते हैं। रत्न चक्रवर्तीको छोड़कर अन्य सामान्य लोगोंको अपनी पीठ दे नहीं सकते। क्योंकि राजाके खड़ाऊँ, सिंहासन आदि उसके मेवकके भोगके लिये योग्य नहीं है। भरतेश्वरने कुछ दूर चलनेके बाद दूरसे ही उस वजकपाटको देख लिया । वह पर्वत लम्बाईमें पच्चीस कोस प्रमाण है। उसमें आठ कोस ऊँचाई व बारह कोस चौड़ाईके प्रमाणमें व्यवस्थित वह वज्रकपाट है। अंदरसे क्रोधाग्निको धारण कर बाहरसे शांत दिखनेवाले क्षुद्रोंके समान वह पर्वत मालम हो रहा था। भरतेश्वरने मागध, बरतनु, प्रभासांकको बुलाकर कहा कि देखो! यही तमिस्र नामक गुफा है। यही वजद्वार है । यह कैसे मालम होता है देखो तो सही। जैसे कोई क्रोधी दंतकीलन कर बैठा हो इस प्रकार यह भी दिख रहा है । अब इसके दांतोंको तोड़कर मह खुलवा देता है। देखो तो सही, इस प्रकार भरतेश्वरने हंसते हुए कहा । लोकमें ओसका समूह बच्चोंको पर्वतके समान मालूम होता है, उससे वे डरते हैं । परंतु मेरे लिये यह वनद्वार भी कोई बड़ी चीज नहीं, अभी देखते-देखते तोड़ डालंगा। स्वामिन् ! उन व्यंतरेंद्रोंने कहा कि लोकमें अमावस्याके अंधकारको दूर करनेके लिये सूर्य समर्थ है, मामूली दीपकोंमें वह सामर्थ्य कहाँ ? इसी प्रकार यह कार्य लोकमें अन्य सर्व वीरोंके लिये अतिसाहसका है, परंतु आपके लिये तो अत्यंत सहज है । H ..' " -
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy