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________________ भरतेश वैभव २४९ इम कार्यको करनेके लिये जिन्होंने योग दिया उन सब व्यन्तरेन्द्रोंका और जयकुमारका बहुतसे वस्त्र, आभूषणोंसे सन्मान किया । दूसरे दिन सम्राट्ने मंत्री और सेनापतिको अपनी महल में बुलाया और बचकपाटको तोड़नेके सम्बन्धमें वार्तालाप करते हुए कहा कि मंत्री ! सेनापति ! सुनो, विजयार्ध पर्वतमें जो वज्रकपाट है उसे मैं कल ही खंड कर देता हूं। उस वज्रकपाटको तोड़ना कोई बड़ी बात नहीं और न इसका मुझे सचमुचमें आवश्यकता ही थी। फिर भी पुर्वोपाजित वार्मको कौन उल्लंघन कर सकता है ? उसके फलको तो भोगना ही पड़ेगा। मेरा जन्म अयोध्यामें हो और सब राज्योंपर आधिपत्यको जमाकर मैं इस पर्वतको पारकर उधरके राज्योंको भी वश करूं यह मेरे विधिका आदेश है। उमका पालन करना तो मेरा कर्तव्य है । किसी कार्यमें चिन्ता करने की जरूरत नहीं । परमात्माकी भावना करते हुए हम प्रत्येक कार्य करते हैं। ऐसी अवस्थामें निराश होने की जरूरत नहीं है । इस प्रकार भरतश्वरने कहा। स्वामिन् ! परमात्माके स्मरणसे आप कर्मपर्वतको फोड़ सकते हैं। फिर इस मामूली पर्वतको तोड़ने में आपको क्या कठिनता है। सब कुछ साध्य हो जायगा । इसमें हमें किसी प्रकारभी संदेह नहीं है । स्वामिन् । जो वचकपाट हाथी सिंहोंके समान भयंकर, आकाशके समान उन्नत है, उसको फोड़ने में सफलता आपको ही हो सकती है। दूसरे लोग उमके पास भी नहीं जा सकते। इत्यादि प्रकारमे कहते हुए सेनापति व मंत्रीने भरतेश्वरकी प्रशंसा की। उन दोनोंका सत्कार कर भरतेश्वरने उनको वहाँसे अपने-अपने स्थानमें जानेके लिए कहा। फिर दसवें दिन प्रातःकाल भरनेश्वरने जिनेन्द्र भगवान्की पुजाकी, विजयार्धकी तरफ जानेके लिये निकले। वीरोचित वस्त्र व आभूषणोंसे अलंकृत होकर बाहर आये, वहाँपर पवनंजय नामक घोड़ेको पहिलेसे शृंमार कर रखा था। वह अश्वरत्न है। उसपर भरतेग आरूढ़ हुए। उस समय भरतेश्वर उस सुन्दर अश्व पर चढ़कर उच्चश्रय घोड़ेपर चढ़े हुए इन्द्रके समान मालूम हो रहे थे। कविगण वर्णन करते हैं कि सूर्य सात घोड़ोंपर आरूढ़ होता है । परन्तु तेजमें भरतेश्वर भी सूर्यसे कम नहीं हैं । यह सूर्य उन सात घोड़ों में से एक ही घोड़े को लेकर आरूढ़ हुआ है। इस प्रकार देखनेवालोंके मनमें कल्पना होती है । भरतेश्वरने अपने यज्ञोपवीतको सम्हालते हुए श्री सर्वज्ञ भगवन्तका स्मरण किया । तदनन्तर दाहिने हाथको दबाकर
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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