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________________ भरतेश वैभव लोहेको कूटते हैं तो अग्नि निकलती है, फिर दण्डरलसे वज्रकपाटको कूटनेपर अग्नि नहीं उठेगी क्या ? एक लकड़ी को दूसरी लकड़ी के साथ घर्षण करनेपर उससे अग्निकी उत्पत्ति होकर जंगलका जंगल भस्म हो जाता है । पर्वतको दण्डरत्नसे कूटनेपर अग्नि प्रज्ज्वलित होवें तो इसमें आश्चर्यं क्या है। यह सब लौकिक दृष्टांत हैं । गुफा में अग्निका भरा रहना साहजिक है। इसलिये उस अग्निको रोकने के लिये जलकी खाई ही समर्थ है । यदि इस प्रकारकी खाईंको व्यवस्था नहीं हुई तो वह अग्नि भयंकर रूप प्रज्ज्वलित होकर दबाती हुई जायगी। सेना भयभीत हो पलायन करेगी। सभी सेलाने मिलकर उस अग्निको बुझाने के लिये प्रयत्न किया तो भी वह निष्फल हो जायगा । जैसे-जैसे सेना उस प्रलय के समान भयंकर अग्निको दबानेके लिये प्रयत्न करेगी वैसी ही वह और भी प्रज्ज्वलित होकर सेनाको दबाती हुई बढ़ेगी। ऐसी अवस्था में इन सब कष्टों को सामना करनेसे क्या प्रयोजन ? एक जलकी खाई बनाई गई तो सब कष्ट दूर हो सकते है । अग्नि उस खाईसे इधर नहीं आ सकेगी। हम लोग निराकुलतासे इधर रह सकते हैं। यह अपनी तरफ आनेवाली अग्निको रोकनेका उपाय है। इसी प्रकार सिंधु नदीके पश्चिमभागमें कदाचित् वह अग्नि व्याप्त हो गई तो प्रलयकालकी अग्नि के समान वह व्याप्त होकर वहाँकी भूमिको जलायेगी, प्रजाओंको महाकष्ट होगा । इसलिये वहाँपर भी एक खाईका निर्माण करो । उत्तरमें पर्वत है । वह अग्निको रोक सकेगा । दक्षिणमें सिंधु नदीके दोनों तटोंतक खाई होनेसे उसमें पानी भर जायेगा । वह पानी उत्तरभागके पर्वततक पहुँचे तो सबका संरक्षण होगा। इस प्रकार की व्यवस्था बहुत विचारपूर्वक करो । सेनापतिको आज्ञा देते हुए उसी समय वरतनु, प्रभासांक आदि व्यंतर राजाओंको भी बुलाकर उनको आज्ञा दी कि इस कार्य में आप लोग भी योग देकर सेनानायक जैसा कहें उसकी इच्छानुसार सहायता देवें । उन लोगोंने समाट्की आज्ञाको शिरोधार्य किया । ૨૪૭ तदनंतर सेनाका मुक्काम उस विजयार्श्वपर्वतके पास करनेके लिए आशाभेरी बजाई गई । क्षणभर में सब व्यवस्था हो गई । सब लोगोंको मकान, महल, मंदिर वगैरहको व्यवस्था देखते-देखते हो गई । विशेष क्या ? एक विशालराज्य की ही वहाँपर स्थापना हो गई। भरतेश्वरने सब राजा प्रजाओंको योग्य उपचारपूर्ण वचनोंसे संतुष्ट कर अपने अपने
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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