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भरतेश वैभव प्रसिद्ध और श्रेष्ठ है । वहाँपर क्रमसे नमिराज, विनमिराज दो भाई राज्य पालन कर रहे हैं । नमिराज विनमिराज सम्राट्के निकटबंधुके हैं। भरतेश्वरकी माता यशस्वतीदेवीके भाई श्री कच्छ और महकन्छ राजाके वे पुत्र हैं । अर्थात् भरतेश्वरके मामाके पुत्र हैं । वे दोनों अत्यन्त प्रभावशाली हैं । सन्त्र विद्याधरोंको अपने आधीन बनाकर विद्याधर लोकका राज्यपालन कर रहे हैं।
विजयाईपर्वतके दक्षिणोत्तर भागमें विद्याधरोंका निवास है, विजयार्धपर्वतके मस्तकपर विजयार्धदेव नामक राजा राज्यपालन कर रहा है । इसके अलावा किन्नर यक्ष आदि देव भी वहाँपर रहते हैं। इस प्रकार गंगा नदी और विजयार्धपर्वतके बीच में एक खंड और सिंधु नदी और विजयार्धके बीच में एक खंड ये दोनों म्लेच्छ खंड कहलाते हैं । विजयार्धके दक्षिणमें गंगा सिंधुके बीचका जो भाग है वह आर्याखंडके नामसे कहा जाता है । इसी प्रकार विजयार्धपर्वतके उत्तर भागमें भी तीन म्लेच्छ खंड हैं, जिनको उत्तरसे हिमवान् नामक पर्वत पूर्व और पश्चिम समुद्रतक व्याप्त होकर सीमाका काम कर रहा है। दोनों पर्वत, दो समुद्र और दो महानदियोंके बीच में छह खंडका विभाग है। इमीको भरत क्षेत्रका पखंड कहते हैं। उसे भरतेश्वर अपने शौर्यसे पालन करते हैं । विजयापर्वततक तो भरतेश्वर आये । उनको अब यहाँपर विद्याधरलोकको वश करनेका है। फिर बिजयार्धपर्वतको पार कर उत्तर भागके म्लेच्छखंडको भी वश करनेका है । विजयापर्वतमें एक बड़े भारी अत्यंत मजबूत वजदार मौजूद है, जो हजारों क्या, लाखों वर्षोसे बंद है। उसे अपने दण्डसे फोड़कर भरतेश्वर आगे बढ़ेंगे।
भरतेश्वरने आगेके कार्यको विचारकर सेनाधिपतिको बुलाया एवं विजयाधंपर्वतके इधर चार योजन प्रमाणमें एक खाई निकाली जावे। इस प्रकारकी आज्ञा उसे दे दी और साथमें यह भी कहा कि आज तो तुम विश्रांति लो और कल अपनी महल और सेनाके रक्षणके लिये तुम्हारे भाइयोंको नियुक्त करके तुम व्यंतरवीर व आवश्यक सेनाओंको लेकर जाओ। फिर खाई निकालनेका कार्य करो।
विजयापर्वतका कपाट (द्वार) हजारों वर्षोंसे बंद है। उसे एकदम तोड़नेमे उससे अग्नि निकलकर बारह कोसनक आगे उछलकर आयेगी । इसलिये आगे वह आकर बाधा न दे सके इस प्रकार होशिपारीसे खाईंका निर्माण करो। लोकमें एक सामान्य लोहेसे दूसरे