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________________ २४१ भरतेश वैभव कुछ व्यवहार, विनय वगैरह बतलाना हो वह हमारे महलमें बतलाओ! यहाँ यह सब करना ठीक नहीं है । अर्कक्रीनिने कहा । भाई ! पिताजी के सामने ऐसा व्यवहार उचित क्यों नहीं ? क्या यह लन्चे-लफंगों का आचार है ? या सज्जनोंका गौग्न है ? हम क्या कोई बुरा काम पार रहे हैं। जिससे कि पिताजीके सामने संकोच करें। आपको अपनी प्रतिष्ठा के समान ही चलना चाहिये और मुझे सेवाकृत्यके लिये आज्ञा देनी चाहिये । मैं कह रहा हूँ, यह ठीक है या गलत है ? इस बातका निर्णय पिताजीसे ही पूछकर कीजियेगा, अब तो कोई हर्ज नहीं है न ? इस प्रकार कहते हुए आदिराजने उस आभरण की पेटीको लेने के लिये हाथ बढ़ाया, परन्तु अर्ककीतिने हाथको हटाया तो भी "मैं नहीं छोड़ सकता" इस प्रकार कहते हुए आदिराज पेटीको छीनने लगा। दोनोंका विनयविनोदयुक्त युद्ध होने लगा। पुत्रोंके वर्तनपर भरतेश्वर अत्यन्त सन्तुष्ट हुए और कहने लगे कि बेटा ! पेटी दो ! उसकी भी इच्छा पूर्ति होने दो। तव आदिराजको और भी जोर मिला | उसने पेटी अर्कोतिसे छीन ली और अपने बगलमें दबाया । फिर दोनों पुत्रोंने भरतेश्वरको भक्तिसे नमस्कार किया व अपनी महलकी ओर प्रयाण किया। इधर भरतेश्वर आनन्दके साथ विराजमान थे। आकाश प्रदेशमें गाजेबाजेका शब्द सुनाई देने लगा। मालूम हुआ कि प्रभासांक देव आ रहा है। चित्तानुमती दासीको बुलाकर वृषभराजको उसके हाथमें सौंप दिया और महलकी ओर भेज दिया। सम्राट प्रभासांक की प्रतीक्षा करते हुए सिंहासनपर विराजमान हैं। पाठकोंको इस दातका आश्चर्य होगा कि चक्रवर्ती भरतेश्वरको बारंबार उत्सबके बाद उत्सवका प्रसंग क्यों आता है ? उनका पुण्य किसना प्रबल है? उन्होंने इसके लिये क्या अनुष्ठान किया होगा? इसका समाधान यह है कि पुण्यके जागृत रहनेपर मनुष्यका जीवन सुखमय बन जाता है। सम्राट्ने इस बातकी भावना अनेक भवोंमें की थी कि मेरी आत्मा सुखमय बने, इस भवमें भी वे हमेशा भावना करते हैं कि : सिद्धात्मन् ! षट्कमलोंके पचास दलों पर अंकित पचास शुभ अक्षरोंको ध्यान कर जो अपना आत्मसाक्षात्कार करते हैं, उनको आपका दर्शन होता है। हमें भी आपके दर्शनकी इच्छा है, इसलिये सुबुद्धि कीजियेगा। हे परमात्मन् ! जो तुम्हारी भावना करते हैं उनको १६
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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