SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९८ भरतेश वैभव स. हुतसे विकड़ी तडताहोल अत्तानो हैं। कितने ही पुष्पांजलिक्षेपण कर रहे हैं। बार-बार लोग सामने आकर भरतेशकी आरती उतारकर शुभकामना कर रहे हैं। अनेक तरह के सुगंधित पुष्पोंको हाथीपर क्षेपण करके जयघोषणा कर रहे हैं। एक तरफसे वीरावली है। दूसरी ओर दारावली है। एक तरफ वीरगुणावली है। दूसरी ओर शृङ्गारावली है। इन सबकी शोभासे सबको अपूर्व आनन्द आ रहा था । स्ततिपाठकोंको, नर्तन करनेवालोंको एवं खिलाड़ियोंको अनेक प्रकारसे इनाम दिलाते हुए भरतेश इस प्रकार के तेजसे जा रहे हैं कि जैसे मन्दराद्रिके ऊपर चढ़कर सूर्य ही आ रहा हो। दिग्विजयमें शुभकामना व भरतेशके स्वागत करने के लिये नगरमें यत्र-तत्र तोरणबंधन किया गया है । कहीं वस्त्रका तोरण, कहीं पुष्पका तोरण, कहीं कोमलपत्तोंका तोरण ! इन सब तोरणोंको पारकर जब सम्राट् आगे बढ़ रहे हैं, उस समय ऐसा मालूम हो रहा है मानो सूर्य अनेक वर्णके आकाशमें आगे बढ़ रहा हो । ___आगे जाकर कहीं काँसेका तोरण है । कहीं सुवर्णका है। यही क्यों कहीं रत्नसंचयका तोरण है। इन सबको पार करते हुए भरतेश ऐसे मालूम हो रहे हैं जैसे चंद्रमा अनेक चमकीले नक्षत्र व बिमलीको पार करते हुए जा रहा हो। उन तोरणोंकी रचनामें यह विशेषता थी कि कहीं-कहीं उनमें पुष्पोंकी पोटली बाँधकर रखी गई थी। भरतेश उनमें जब प्रवेश कर रहे थे तब दोनों ओरसे दो दीर्घ डोरोंको खींचनेपर भरतेशके ऊपर पुष्पवृष्टि होती थी। तब सब लोग जयजयकार करते थे । इस प्रकार पत्तनप्रयाणकी शोभा अपूर्व थी । जिस प्रकार शृङ्गार. वनमें मन्मथराज बहत वैभवके साथ प्रवेश करता है, उसी प्रकार भरतेश भी अयोध्यानगरके राजमार्गोंमें बहुत वैभवके साथ जा रहे हैं। इस प्रकार बहुत बड़े राजवैभनके साथ योग्य समयमें भरतेशने अयोध्याके परकोटेके बाहर पदार्पण किया। ___नगरके बाहर बड़े भारी मैदानमें प्रस्थानके लिये विशाल सेना तयार होकर खड़ी है । सेनापतिरत्न सम्राट्की आनाकी प्रतीक्षामें हैं । भरतेश भी बहुत प्रसन्नताके साथ गजरलपर आरूढ़ होकर उसी ओर जा रहे हैं । सेनाको देखकर उन्हें हर्ष हुआ ।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy