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________________ १९६ भरते वैभव देखने के लिए भागे आए हैं । आ रहे हैं। अपनी महलके ऊपर चढ़कर देख रहे हैं। स्त्रियोंकी बात कहना ही क्या? वे उमड-उमडकर भरतेशको देखने के लिए उत्सुक हो रही हैं। किसी भी पुरुषके भनमें भी हमारी स्त्रियाँ भरतेशको नहीं देखें इस प्रकारका विचार उत्पन्न नहीं होता है, क्योंकि भरतेश परदारसहोदर हैं। भाईको बहनें देख तो क्या बिगड़ता है ? ___ कहीं कहीं पुरुष अपनी स्त्रियोंके साथ खड़े होकर देख रहे हैं । कहीं स्त्रियाँ अकेली ही देख रही हैं । अनेक वेश्यायें षट्खण्डाधिपतिकी शोभाको देख रही हैं। कितनी ही स्त्रियाँ हड़बड़ीसे दौड़ी आ रही हैं और भरतेशको देखनेके लिए उत्सुक हो रही हैं। चूल्हेपर दूध गरम करनेके लिए रखा हुआ है। उसे उतारनेकी चिन्ता नहीं। सामनेसे बच्चा रो रहा है उसकी ओर लक्ष्य नहीं। सबको वैसे ही छोड़कर बाहर आ रही हैं। जो स्त्रियां अनेक विनोदलीला करती थीं, उन्हें अर्धमें ही छोड़कर एवं संगीतको भी अर्धमें ही बन्द कर भरतेशको देखनेके लिए गई। एक स्त्री तोतेको पढ़ा रही थी। अब तोतेको पिंजड़े में रखकर जानेमें देरी होगी इस हड़बड़ीसे तोतेको भी साथ लेकर आयी और जुलशकी शोभा देखने लगी। कितनी ही स्त्रियां हाथमें दर्पण लेकर कुंकुम लगा रही थीं । उधरसे बाजोंके शब्दको सुनते ही कुंकुम लगाना भूलकर दर्पणसहित ही बाहर आई और बहुत आनंदके साथ देखने लगीं। एक स्त्रीकी देणी व साड़ी ढीली हो गई थी। तो भी वेणीको तो दाहिने हाथसे व साड़ीको बायें हाथसे सम्हालती हुई बाहर दौड़कर आई। एक वेश्या विटके साथ क्रीड़ेके लिये स्वीकृति देकर अन्दर जा रही थी। उतनेमें बाजेके शब्दको सुनकर वह उस विटको आधे में ही छोड़कर बाहर भाग गई। बहुत दिनसे अपेक्षित विटपुरुषको घरपर आनेपर बहत-बहुत हषित होनेवाली वेश्यायें जुलसके शब्दको सुनते ही बिटके प्रति निस्पृह होकर भाग आयी । विशेष क्या कहें ? पान खानेके लिये जो बैठी थी वह पान खाना भूल गई। जिनका पदर सरका था उसे भी ठीक करना भूल गई। एकदम परवश होकर वेश्यायें भरतेशको देखने लगीं।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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