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भरतेश वैभव
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रास्तेमें जाते समय बहुतसे कुलवृद्धजन भरतेशको आशीर्वाद दे रहे हैं। विद्वान् लोग मंगलाष्टकका उच्चारण कर भरतेशके ऊपर असतक्षेपण कर रहे थे। बहुतसे लोग बीच-बीचमें आकर फल, पुष्प आदिकी भेंट रखकर नमस्कार करते थे एवं राजन् ! आपका भला हो । आपकी जय हो, इत्यादि शुभभावना करते थे।
जिम समय भरतेश अत्यन्त आनन्दके साथ जिनमन्दिरसे बाहर निकले उस समय अकस्मात् ही उनके दाहिने भुज, जंघा व आँख में स्फुरण होने लगा, जो निकट भविष्यमें अद्वितीय सम्पत्तिकी सूचना थी।
बहुत वैभव के साथ आप पांचों परकोटोंसे बाहर आये। वहाँपर पट्टका हाथी तैयार था। पर्वतके समान उस सुन्दर हाथीपर "जिनचरण" शब्दको उच्चारण करते हुए भरतेश आरूढ़ हो गये। उसी समय सेवकोंने मोतीके छत्रको ऊपर उठाया व इधर उधरसे चामर डुलने लगे । इतना ही नहीं चारें और ध्वजपताकाचे उठीं ध करोड़ों तरहके बाजे बजने लगे। ___सामनेसे स्तुतिपाठक जा रहे थे । वे अनेक प्रकारसे राजाकी स्तुति करते हुए सुभभावना करते थे।
स्वामिन् ! आप अनेक वैरी राजाओंके पति हैं। शत्रुरूपी अंधकारके लिए सूर्य के समान हैं। जयलक्ष्मीके आप पति हैं। आपकी जय हो ! इत्यादि स्तुतियोंको सुनते हुए भरतेश नगरके विशाल मार्गों में जा रहे हैं। उस समय दूरसे भरतेशका किरीट सूर्यके समान मालम हो रहा था। शरीर सोने के पुतलेके समान मालूम हो रहा था । भरतेशके ऊपर जो प्रकाशमान मोतीका छत्र रखा गया था उसके प्रकाशसे ऐसा मालूम हो रहा था कि अनेक नक्षत्रोंके बीचमें चन्द्रदेव आ रहा हो। बत्तीस चामर जो इधर-उधरसे डुल रहे हैं उनको देखने पर मालम होता है कि राजा भरतेश क्षीरसमुद्रमें हाथी चलाते हुए आ रहे हैं।
हाथीके आगे दो सुन्दर उज्ज्वल-ध्वज मौजूद हैं, जिनका नाम क्रमसे चन्द्रध्वज व सूर्यध्वज है । उनकी शोभाको देखनेपर ऐसा मालूम हो रहा है कि चन्द्र व सूर्य ही भरतेशको आकर ले जा रहे हैं। इस प्रकार अनेक वैभवोंके साथ आप दिग्विजय प्रस्थानके लिए जा रहे हैं।
पुरुषोत्तम भरत आज अयोध्या को छोड़कर दिग्विजयके लिए जा रहे हैं, यह सबको मालूम ही था । सब लोग उनकी विहार शोभाको