________________
भरतेश वैभब
१९३ हैं। इसलिए प्रयाणके समय तोंकी क्या आवश्यकता है ? आप लोग वैसे ही जाएँ। "माता! भरतराज्य (षट्खण्ड ) हमारे ही हैं, वह परदेश नहीं है। इसलिए हम स्वदेश गमन ही कर रही हैं। सो इन व्रतोंकी हमें आवश्यकता है" ऐसा आग्रहपूर्वक कहकर सब स्त्रियोंने सासके चरणोंमें भक्तिपूर्वक मस्तक रखा । सासने भी "तथास्त" कहवा आशीषद श्या ।
सासकी आज्ञाको पाकर वे सब स्त्रियाँ बहुत आनन्द व उल्लासके साथ वहाँसे चली। उन लोगोंका पारस्परिक प्रेम, लोकमें ईर्ष्या व मत्सरसे जानेवाली एक पतिकी अनेक स्त्रियोंके दुःखमय जीवनको तिरस्कृत कर रहा था। सदा परस्पर झगड़ा कर एकमेकको गाली व शाप देकर, सवतमत्सरके साथ जीनेवाली स्त्रियोंसे नारकियोंके जीवन कदाचित् अधिक सुखमय हैं। इस बातको स्वकृतिसे व्यक्त करती हुई वे बहत आनन्दके साथ जा रही थीं।
५ सोनेकी पालकियाँ तैयार थीं उसपर आरूढ़ होकर रानियोंने प्रस्थान किया। उनकी दासियोंने चाँदीकी पालकियोंपर चढ़कर उनका अनुसरण किया।
रमणियोंकी पालकियोंकी बीच एक सोनका रथ जा रहा है जिसमें अर्ककोतिकुमारका सुन्दर झूला सुशोभित हो रहा है।
राजा भरत अनुकूल नागरांक, दक्षिणांक आदि मंत्री व मित्रोंके साथ सोनेके खड़ाऊँ पहनकर जिनमन्दिरकी ओर चले। रास्तेमें ज्योतिषी, स्तुतिपाठक, गायक आदि अनेक तरहके लोग भरतेशके दिग्विजय प्रस्थानके समय शुभकामना कर रहे हैं। ___ज्योतिषी लोग पंचांगशुद्धिको देखकर योग्य मुहूर्त व लग्नको निवेदन कर रहे हैं। शास्त्र पाठक श्री भरतेशको यश व जयकी सिद्धि हो, इस प्रकार उच्च स्वरसे घोषणा कर रहे हैं। गायन करनेवाले श्रीराग मधुमाधवीराग आदि अनेक रागोंमें आत्मविवेचन करनेवाले पदोंको गा रहे हैं। इसके अलावा अनेक प्रकारके वाद्योंके मधुर शब्द और धवल शंखोंके भों-भोंकार हो रहे हैं। उन सबको सुनते हुए भरतेश जा
भरतेश माताकी महलसे जब बाहर निकले उस समय दो कौवे देखने में आये । उसी प्रकार बायीं ओरसे पाल रुदन करने लगे। आकाश प्रदेशमें सामनेसे एक गरुड़ बराबर भाग रहा था । अनुकूल नायकने समयकी अनुकूलता देखकर भरतेशको उसे इशारेसे बतलाया ।