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________________ १९२ भरतेश वैभव अनेक तरहके शृंगारोंको धारण कर रानियोंने झुण्डके झुण्ड आकर अपने पतिकी प्रसवित्रीके चरणोंको नमस्कार किया। यशस्वती देवीने भी आशीर्वाद दिया कि देवियों ! तुम लोग दुःखको स्वप्नमें भी नहीं देखकर हमारे पुत्रके साथ आनन्दसे वापिस लौटना । दिग्विजय प्रयाणमें आप लोगोंको कोई कष्ट नहीं होगा। आप लोग प्रसन्न चित्तसे जाएँ। तब उन बहुओंने पूज्य सामान किया कि पाना हम समय योग्य सदुपदेश दीजियेगा। इस बातको सुनकर यशस्वती देवी कहने लगी कि विवेकी भरतकी स्त्रियोंको मैं क्या उपदेश दे सकती हूँ। आप लोगोंके पतिकी बुद्धिमत्ता लोकमें सर्वत्र विश्रुत है। हमसे पूछनेकी क्या जरूरत है। अपने पतिकी आज्ञानुसार चलना यही कुलस्त्रियोंका धर्म है। आप लोग अविवेकिनी नहीं हैं और न एकमेकके प्रति आप लोगों में ईर्ष्या है। ऐसी अवस्थामें तुम लोगोंको अब उपदेश देने लायक बात कोनसी रही है यह समझ में नहीं आता। इसलिये मुझे आप लोगोंके संबंधमें कोई चिंता नहीं है, आनन्दसे आप लोग जाएं व दिग्विजय कर पलिके साथ लौटें। इतनेमें सभी शीलवतियोंने साससे प्रार्थना कि आज हम सब पतिके साथ दिग्विजयविहार में जा रही हैं। ऐसी अवस्थामें हमें प्रतिनित्य आपके चरणोंका दर्शन नहीं मिल सकता। इसलिए पुन: जब आकर आपके पूज्य पादोंका दर्शन हमें हो तबतक कुछ न कुछ ब्रत लेनेकी आज्ञा दीजिएगा । तदनुसार सभी सतियोंने भिन्न-भिन्न प्रकारके व्रत लिये किसीने भोजनके रसोंमें नियम लिया। किसीने पुष्पोंमें अमुक पुष्पका मुझे त्याग रहे इस प्रकारका व्रत लिया। किसीने तांबूलका त्याग किया। किसीने वस्त्रोंका नियम किया। एक स्त्रीने मल्लिका पुष्पका त्याग किया। एकने जाई पुष्पका त्याग किया। एक सतीने दूधका त्याग किया, एकने केलेका त्याग किया। एकने फेणीका त्याग किया। दूसरीने गोरोचन और दूसरीने कस्तूरीका त्याग किया। एक स्त्रीने रेशमी वस्त्रोंका त्याग किया। एकने मोतीके आभरणोंका त्याग किया। इस प्रकार अनेक स्त्रियोंने तरह-तरहसे अनेक नियमोंको लिये। यह सब नियमव्रत है । यम नहीं। क्योंकि सासके पुनर्दर्शनपर्यंत इनका कालनियम है ! बहुओंकी भक्तिको देखकर माता यशस्वतीको बहुत हर्ष हुआ और कहने लगी कि बहुओं ! आप लोग परदेशको गमन करने जा रही
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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