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भरतेश वैभव इसलिये माता ! आपका पुत्र न अविवेकी है और न हमें कोई कष्ट है, हमें तो महासुख है।
इस बात को सुनकर माता यशस्वती बहुत प्रसन्न हुई और कहने लगी कि आप लोगोंसे मैं अत्यन्त प्रसन्न हो गई हूँ। अपने पतिके गौरव के प्रति आप लोग भी अभिमान रखती हैं यह हर्षका विषय है। इसी प्रकार धर्माचरण करती हुई आप लोग सुखसे रहो । बेटी ! अब देरी हो चुकी है। पारणाके लिऐ जल्दी जाओ । अब विलंब मत करो।।
तब उन देवियोंने कहा माता ! आज पतिदेव आपकी पंक्ति में ही बैठकर अपने महल में पारणा करनेवाले है। मुनियोंको आहारदान देकर वे आपको बुलानेके लिये यहाँ आयंगे। तबतक हम लोगोंको यहीं पर रहनेके लिए आज्ञा हुई है। ___ इस बातको सुनकार यमस्वत: विचार करने लगा कि हाँ ! मेरा पुत्र उपवासमें ही यहाँ तक आयेगा, उसे व्यर्थ ही कष्ट होगा, प्रकट रूपसे कहने लगी कि देवी ! अपन ही उधर चलें। भरतेशको व्यर्थ क्यों कष्ट हो? यदि वह हमारे महल में पारणा करता तो यहां आनेकी आवश्यकता थी, नहीं तो व्यर्थ ही उसे कष्ट क्यों दिया जाय? इस कहती हई एक विश्वासपात्र सतीको बुलाकर आज्ञा दी कि तुम अजिकाओंको आहारमान देनेका कार्य अच्छी तरह करो। मैं भरतेशके महलकी ओर जाती हूँ !
माता यशस्वती देवी अपने बहुओंके साथ मिलकर अब भरतेशके मन्दिरकी ओर आई । भरतेश भी मुनियोंको आहार देकर उधर ही जानेको निकले थे कि मार्ग में मातुश्रीको आती हुई देखकर दुःखी हुए कि माताजीको कष्ट हुआ। मैं जाता तो इनको योग्य वाहनपर बैठाकर लाता। फिर प्रकट रूपसे अपनी स्त्रियोंसे बोलने लगे कि मैंने आप लोगोंको आज्ञा दी थी कि मैं वहाँपर जरूर आऊँगा, तबतक आप लोग वहींपर ठहरें, अब आप लोगोंको कांता कहें या भ्रांता कहें समझमें नहीं आता । उन स्त्रियोंने कहा स्वामिन् ! हम लोगोंने उसी प्रकार बिनती की थी, परन्तु अपने बेटेको कष्ट होगा इस पुत्रमोहसे माता एकदम उठीं, उस समय उन्हें कौन रोक सकता था?
माता यशस्वतीने कहा बेटा ! व्यर्थ दुःखी मत हो। मैं अपनी इच्छासे ही आ गई हूँ। जब तुम्हारी स्त्रियाँ आ गईं तब तुम्हारे ही आनेके समान हो गया।