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भरतेश वैभव सभी रानियाँ अत्यन्त प्रसन्न हुई।इतना ही नहीं, उनको साक्षात् मुक्ति मिली हो इस प्रकार हर्ष हुआ। वे सब आनन्द के साथ कहने लगी कि स्वामिन् ! आपकी कृपासे हमें आज सस सम्यक्त्वकी प्राप्ति हुई है, जो किसी भी जन्ममें नहीं प्राप्त हुआ था। अब हमें मुक्ति प्राप्त होने में क्या कठिनता है ? स्वामिन् ! आपके संगमें हम कृतकृत्य हो गई हैं । यह कहकर सभी रानियोंने भरतेश्वरके चरणोंमें साष्टांग नमस्कार किया।
जब भरतेशने सबको उठनेके लिये कहा तब सब उठकर खड़ी हो गई।
सूर्य अस्ताचलकी ओर चला गया है। सबने जान लिया कि अब जिनवंदनाका समय हआ है। उसी समय वे रानियो उस विशाल जिनमंदिरकी ओर चली गई। इधर भरतेश स्वाध्यायशालामें ही रहे।
भरतेशकी रानियोंको उस जिनमन्दिरके मार्ग व भरतेशको स्वाध्याय मन्दिरमें छोड़कर हम अब जरा अपने प्रेमी पाटकोंके हृदयमन्दिर में जाते हैं। वे अपने मनमें विचार करते होंगे कि दिनभर उपवासयुक्त रहते हुए भी दोपहरसे लेकर सन्ध्यातक बराबर तत्वचर्चा चल रही है। भरतेशच उनकी रानियोंको उपवासका कोई कष्ट नहीं हो रहा है। बात क्या है ! विचार करनेपर मालम होगा कि भरतेश रात-दिन परमात्माके प्रति इस प्रकारकी भावना करते थे कि हे परमात्मन् ! संसार में एकमात्र आशापाश ही सर्व दु:खोंका कारण है। वही आत्माको दुःख समुद्र में फंसाती है। इसलिये उस आशापाशको दूर करनेके लिये तुम्हारे सान्निध्यकी आवश्यकता है। एक क्षणभर भी मुझे नहीं छोड़कर मेरे पास ही बने रहो । मैं इधर उधर की चिंता हटाकर सदा तुम्हारी भावना करता रहँ। यही नहीं माने खाने पीनेकी ओर भी उपयोग लगानेका अवसर न मिले, जिससे सदाके लिये मेरे क्षुधादिक दुःख दूर हो जायेंगे। ऐसी अवस्थामें उनको उपवासका कष्ट क्यों कर हो सकता है ? भरतेशसभाकी सन्संगतिमें रहनेवाली रानियोंको भी वह कष्ट क्यों कर होने लगा ? यह सब पूर्व जन्ममें अजित पुण्यका फल है ।
जब कि इस तत्व चर्चाको अध्ययन करनेवाले हमारे पाठक भी थोड़ी देरके लिये भूखण्यासादिको भूलकर उसमें तन्मय हो जाते हैं तो उस चर्चा में साक्षात भाग लेनेवाले उन पुण्यपूरुषोंको अलौकिक आनन्द आकर वे इतर विषयों को भूल जावें इसमें आश्चर्य की बात ही क्या है?