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भरतेश वैभव
तुम्हें एक सुन्दर और आदर्श कथा सुनाता हूँ। यदि आप सुनेंगे तो आत्मकल्याण आज, कल या परसों तक होगा। ___ यह भरतेश वैभव है । इसे सुनो! इसको सुननेसे वारंवार सौभाग्यकी प्राप्ति होगी। पापका विनाश या पुण्य का लाभ होगा। देवेंद्रपदवीकी प्राप्ति होगी, अंतमें मोक्ष भी मिलेगा, इसमें संदेह नहीं ।
जिसने अगणित राज्य संपत्तिका उपभोग कर, दिगम्बर योगी बन कर क्षणमें कर्मोको भस्मकर अनन्तमौल्यको प्राप्त किया ऐसे महाराज भरतेशका वैभव क्या आप मुनना नहीं चाहेंगे? __इस कान्यमें अध्यात्म और शृङ्गारका इस प्रकार विवेचन करूँगा कि जिममें त्याग और भोगकी मीमा झाल हो जाय और त्यागी और भोगी दोनोंके हृदयमें उसका रोमांचकारी अनुभव हो जाय । सुनिये तो सही।
कविगण काव्यके कलेवरको पूर्ण करने के लिये समुद्र, नगर, राजारानी आदिका वर्णन करनेको पद्धति से निरूपण करते है। परन्तु वैसा हम नहीं करेंगे; कारण इस ग्रन्थमें मुझे चरित्रकी ओटमें कुछ अध्यात्मका वर्णन भी करना है। । यद्यपि इस कृतिका रचयिता में सामान्य मनुष्य अवश्य हूँ। परन्तु चरित्रनायकः तो सामान्य नहीं है। वह कृतयुगके प्रथम तीर्थकरके पुत्र हैं । इसलिये आप सुनें और मेरा दोष न देखें। - यह पुण्यकथा पुण्यात्माओंको रुचिकर होगी। दुर्जनों को बह पसंद नहीं आयेगी। पापको दूर कर पुण्यसंपादन करते हुए स्वर्ग जानेकी इच्छा रखनेवाले इसे अवश्य सुनें।
___"ॐ नमः, जिनं नमः, सिद्ध नमः, हसं नमामि इत्यादि मन्त्रोंको कहनेके बाद यदि इस कथाको सुननेकी इच्छा हो तो 'इच्छामि' कहिये । इतना ही नहीं, अच्छी तरह उपयोग लगाकर सुनिये ।
आस्थान संधिः भरत क्षेत्रकी भूषणस्वरूप अयोध्या नगरीमें भरतचक्रवर्ती सुखसे राज्यपालन कर रहा था। उसकी संपत्तिका मैं क्या वर्णन करूं ?
भगवान् आदिनाथका ज्येष्ठ पुत्र, पृथ्वीका एक मात्र राजा वह भरत क्षणभर यदि आँख मीचले तो मुक्तिको देखता है, उसका वर्णन कौन कर सकता है ?