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________________ १४९ भरतेश वैभव हसता है, फिर नीचे गिरता है उसी प्रकार देव स्वर्गमें दिव्य सुखोंको अनुभव कर नीचे भूतलपर पड़ते हैं। जिस प्रकार कोई बच्चा किसी गड्ढे में गिरकर रोते पीटते ऊपर चढ़ आता है उसी प्रकार नारकी जीव भी नरकके दुःखोंको अनुभव कर ऊपर आते हैं। जन्म-मरण स्वर्ग में भी हैं, नरक में भी हैं। शरीरभार भी दोनों जगह है । स्वर्गका शरीर चार दिन सुन्दर दिखता है। वहाँ चार दिन सुख मालम होता है । नरकका शरीर चार दिन दुःखमय प्रतीत होता है। इतना ही अन्तर है। देवी ! नारकी देह क्या और देवोंका देह क्या ? एक तो लकड़ी का बोम है तो दूसरा चन्दनकी लकड़ीका बोझा है। दोनोंमें वजन की दृष्टिसे कोई अन्तर नहीं है। इतना ही स्वर्ग ब नरक में भेद है। ज्ञानरूपी शरीरको धारण कर पौद्गलिक शरीरभारसे रहित हो अपने स्वाधीनरूपमें ठहराना ही मुक्ति है। ऐसा न करके उच्चनीच शरीरके आधीन होकर भटकनेसे पाय पापका बन्ध अवष्य होता रहेगा। देवी ! देखो ! दर्पणपर कीचड़का लेपन करो, चाहे चन्दनका लेपन करो। दोनों प्रकारसे दर्पणकी स्वच्छता नष्ट होती है । वह प्रतिबिंबको दिखाने का काम नहीं कर सकता है। इसी प्रकार पुण्य व पाप दोनोंके सम्बन्धसे आत्माकी स्वच्छता नष्ट हो जाती है। जिस प्रकार दर्पणपर लिप्त चंदन व कीचड़को घिसकर निकालने से दर्पण स्वच्छ होता है, उसी प्रकार पाप व पुण्यको आत्मयोगरूपी पानीसे धोकर निकालनेसे आत्मा अपने स्वरूपमें अर्थात् मुक्ति में लीन हो जाता है। देवी ! पाप पुण्यका त्याग एकदम नहीं किया जा सकता है। पहिले मनुष्यको पापक्रियाओंको छोड़नी चाहिये । पुण्य क्रियाओंमें अपनी प्रवृत्ति करनी चाहिये फिर आत्मयोगको साधन करने के लिए अभ्यास करना चाहिये। जब उसकी मिद्धि हो जाय, तब पूण्य क्रियाओंका भी स्याग कर देना चाहिये। जिस प्रकार धोबी कपड़ेको साफ करनेके लिये पहिले उस मसालेके पानी में भिगोकर रखता है, तदनंतर स्वच्छ पानीसे धोता है तब कहीं वस्त्र निर्मल होता है। केवल मसालेके पानीमें डुबे रखनेसे ही वह कपड़ा स्वच्छ नहीं हो सकता है 1 इसी प्रकार पहिले पुण्यवासना द्वारा पापवासनाका लोप करना चाहिये। केवल इतनेसे ही काम नहीं चलेगा । यदि उस पुण्य वासनाको भी आत्मयोगसे नहीं धोयें, तो आत्मा जगत्पूज्य कभी नहीं बन सकता है। यहाँपर
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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