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________________ भरतेश वैभव १४३ अन्य कारणसे नहीं । उस दिन वे एक दूसरेके शरीरको स्पर्श नहीं करते थे। कदाचित् वैयावृत्य करनेके विचारसे स्पर्श करते भी तो भरतको एक तपस्वी समझकर ही स्पर्म करते । विचार करने की बात है। उन लोगोंका सुख किम श्रेणीका है ? आजका उपवाम किस प्रकारका है ? इतना ही नहीं, पति-पत्नी एक साथ रहनेपर भी मनमें जरा भी विकारका अंश नहीं है। इसे ही वास्तविक तप कहते हैं। लोकमें स्त्री और पुरुष अलग रहकर अपने ब्रह्मचर्य व्रतको व्रतला सकते हैं। परन्तु एक साथ रहकर भी मनमें कोई विकार उत्पन्न न होने देना यह तलवार की धारपर चलना है। ऐसे भी बहुतसे देखे जाते हैं जो पहिले व्रत तो ले लेते हैं फिर स्त्रियों को देखकर विचलित होते हैं। परन्तु लोगोंके भयसे किसी तरह रुके रहते हैं । उनको घोडा ब्रह्मचारी कहना चाहिये। ___कोई कोई भरी सभामें व्रत तो लेते हैं, फिर सुन्दर स्त्रियों को देखकर मन ही मन काशीफलके समान सड़ते रहते हैं। क्या यह व्रत या आडंब स मंग' महण करने बाद उसे सर्पके समान अत्यंत मजबूतीसे पकड़ रखना चाहिये । कदाचित् हाथको ढीला करे तो जिस प्रकार वह सर्प काटकर अपना सर्वनाश करता है उसी प्रकार व्रत भी सर्वनाश करता है । जिस समय किसी पदार्थको हम लोग भोगते हैं उस समय तन्मय होकर उसे अच्छी तरह भोग लेना चाहिए। जिस समय उसका त्याग करते हैं उसके बाद उमका स्मरण भी नहीं करना चाहिये। इतना ही नहीं, उसकी हवा भी न लगने पावे इस प्रकारकी चतुरता रखनी चाहिये । एक बार स्त्री त्याग करने के बाद फिर वह स्त्री आकर आलिंगन करे तो भी अपने हृदयमें कोई विकार न होने देना असली ब्रह्मचर्य है । सामने स्त्रियों को देखकर मनमें पिघलना नकली ब्रह्मचर्य है । जिनके हृदयमें दृढ़ता है, भावमें शुद्धि है, वे स्त्रियोंसे बोलें तो उनका क्या बिगड़ता है ? उनकी ओर देखें तो क्या होता है ? हँसें तो क्या होता है ? इतना ही नहीं, स्पर्श करें तो भो क्या है ? उनके मनमें जरा भी विकार उत्पन्न नहीं होता है। पानीके स्पर्शसे केलेके पत्ते भीग सकते हैं। परन्तु क्या कमलके पसे भींग सकते हैं ? इसी प्रकार स्त्रियोंके संबंध में निर्बल हृदयवाले
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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