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________________ १०६ घरदेश वैश हम जानती हैं कि आपका शरीर लेटा है । परन्तु आत्मा नहीं सोया है । मन तो आपका आत्मामें ही लगा हुआ है तो निद्रादेवी आपपर अधिक प्रभाव नहीं दिखा सकती। हम तो उपचारवश उठा रही हैं। बाहर सूर्य को देखते हैं परन्तु अपने शरीरमें स्थित आत्मसूर्य का दर्शन ही नहीं करते हैं उन अन्धमनुष्योंको आत्मदृष्टि देनेवाले है प्रत्यक्ष देव ! भव्योंको बाहर आकर दर्शन दीजिये । 'राजन् ! सूर्योदय हो गया, आज भाद्रपद वदि चतुर्दशीका दिन है। आप बाहर आकर जिनपूजाके लिये मंदिरकी ओर पदार्पण तो कीजिये? इस प्रकार स्त्रियोंके प्रभातकालीन गीतको सुनकर भरतेश्वरने भी हजारों पलंगोंपर पड़े हुए अपने प्रतिरूपोंको अदृश्य कर लिया । पश्चात् भावदृष्टिसे आत्माका एक बार दर्शन कर पुनः विसर्जन किया। "श्रीवीतराग " यह शब्द उच्चारण करते हुए वहाँले उठे । लोग तो प्रातःकाल उठते ही अपने मुखको दर्पण में देखनेकी चिन्ता करते हैं, परन्तु भरतेश्वर उसे अपने आत्मदर्पण में देखते हैं । देखिये । क्या विचित्रता है ! भरतजी अपने पलंगपरसे उठे व अपनी स्त्रीसे देवि ! तुम भी शुचिर्भूत होकर जिनमन्दिरको आओ, कहते हुए बाहर आये और जिनाभिषेकके लिये मन्दिर जानेकी तैयारीमें लग गये । इति सम्मानसंधिः । अथ वीणासंधि कुसुमाजीके उस वीणावादनका वर्णन कैसे करूँ ? वीणादेवीकी वह शायद सखी ही होगी इस कौशल्यके साथ वह बीणा बजा रही थी । अपनी गोदपर वीणाको रखकर, बाँयें हाथसे उसे धरकर, और दाँयें हाथ से जिस चातुर्यसे उस कलाका प्रदर्शन कर रही थी वह दृश्य अपूर्व था, नानाप्रकारके कौशल्यसे, समय व शास्त्रको जानकर विविध रागोंका वह प्रदर्शन कर रही थी, श्रीरागके आलापनेके बाद मालव आदि अनेक रागोंके आधारसे वह गा रही है। भरतेश उस नादलहरीमें मग्न हुए हैं। इसके बाद परमात्मकलाका वर्णन उस गायनमें होने लगा
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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