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भरतेश बैभव फिर जागृत होरे थे इस कहने की क्या आश्यकता है ? सुरतसुखका अनुभव कर तृप्त हो गये इतना ही संकेत पर्याप्त है। आंखोंमें चक्कर, बाहों में ढीलापना, एवं बातचीत बन्द होकर दोनों तकियेके सहारे टिक गये, यह लिखकर दूसरोंको भेद क्यों देवें? ___ इस प्रकार भरतेश व कुसमाजी सुख भोगकर तृप्त हो गये । रत्नाकरसिद्धने उन दोनों के सुखके प्रकारको वर्णन कर भी दिया है । परन्तु वर्णन करनेकी मेरी इच्छा नहीं भी है यह भी बतलाया है। सचमुच में यह कविका चातुर्य है। ऐसे विषयोंको विशद वर्णन करें तो कविका मस्तक मदोष या विकृत समझा जा सकता है ? कभी नहीं। ९६ हजार रानियोंके बीच में रहते हुए भी कर्मोकी निर्जरा करनेकी शक्ति भारत में विद्यमान है तो क्या ऐसी बातोंकी रचना करते हुए भी उमसे दोषाम अलिप्त रहनेकी युक्ति रत्नाकरसिद्धमें नहीं होगी ? अवश्य होगी, परन्तु वह सुख्ख पर्देका है। पर्दे में रहनेमें ही उसकी शोभा है, इसलिए उसे पर्दे में ही रखा है।
कुला, घोड़ा व पशुओं का संसर्ग जिस प्रकार देखने में आता है उसी प्रकार हाथी ब हथिनी का संयोग कहीं देखनेमें आ सकता है ? हीन स्त्रीपुरुषोंके संसर्गके वर्णनके समान क्या महापुरुषोंके संसर्गसुखका वर्णन किया जा सकता है ? ___सामान्य पक्षियोंकी रति देखी जा सकती है, राजहंसकी रति देखने में आ सकती है ? इसी प्रकार दुर्जनोंके संभोग के समान गुणशीलयुक्त सज्जनोंके सम्भोग को वर्णन करना उचित है ? कभी नहीं।
लोकके अन्यग्रामीण व नगरवासी पुरुषोंकी कामक्रीडाको जिस दंगसे वर्णन किया जा सकता है उस प्रकार भरत चक्रेश्वरके कामक्रीड़ा कौशल्यका वर्णन किया जा सकता है ?
लोक की अन्य स्त्रियोंके रतिसुखको जिस प्रकार कहा जा सकता है उस प्रकार महाशीलबनी पतिव्रता कुसुमाजीका वर्णन करना उचित है? नहीं।
राम्राट भरतने उस अकेली कुसुमाजीको तृप्त किया इसमें आश्चर्य क्या है ? एक साथ ९६ हजार रानियोंके तृप्त करने की शक्ति उसमें मौजूद है। क्या वह कोई सामान्य राजा है ?
कामरूपी घोड़ेकर लगाम भरतेशके हाथ में है। वह चाहे जैसे उसे ढीला कर सकता है। कस करके रख सकता है। उसकी चालको तेज ब धीमी करने में अत्यन्त चतुर है ।