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________________ भरतेश वैभव उतार डालती हूँ" कहकर अपने कंठके रलहारपर उसे उतारनेके लिये हाथ लगाने लगी। आश्चर्यकी बात है कि यह कंठसे बाहर नहीं निकला । मकरंदाजी समझ गई कि सम्राट्ने रलहारको कंठमें स्तंभित कर दिया है, इसलिये वह विस्मित होकर राजाकी ओर देखने लगी एवं कहने लगी कि राजन् ! यह तुम्हारा हार मेरे गलेको क्यों नहीं छोड़ता है, यह भी लमसरीखा ही हतग्राही मालम होता है। देखो तो सही। उसे में छोड़ो' 'छोड़ो' कहती हैं, परन्तु वह मुझे नहीं छोड़ता है। भरतेश बोलने लगे कि मकरंदाजी : मने तुम्हं दश समय तोग' आभूषण दिये थे। एक कंठके लिये, दूसरे हृदय के लिये व तीसरे मुबके लिये। परन्तु उनमें से दो रखकार एक ही तुम वापिस दे रही हो। इसलिए वह कंठहार तुम्हारे गलेसे नहीं निकलता है । दूसरी बात हम दिये हुए पदार्थको बापिस लेनेवाले नहीं हैं। इसलिये अब उस रत्नहारको स्पर्श मत करो। वह तुम्हारा ही है। परन्तु ध्यान रहे आज हमारे साथ मनमाने ढंगसे उद्दण्डतापूर्वक बोल चुकी हो इसलिये इसका बदला लिये बिना नहीं छोडूंगा। मकरंदाजी ! छह महीना और ठहरो बादमें तुम्हारी सब उछल कूदको बंद कर दूंगा, तबतक सबर करो। ___ मकरन्दाजी -भाबाजी ! क्या? आपने क्या विचार किया है मुझसे बोलिये तो सही। भरतजी क्या बोल ? सुनो! तुम्हारी बड़ी बहिन कुसुमाजीके समान बना डालूंगा । समझी ? इस बात को सुनकर वह लज्जाके मारे खंबेके पीछे दौड़ गई, साथमें उसको कुछ हर्ष हुआ। तब इस वचनको सुनकर कुसुमाजीको हर्ष हुआ। वह मकरन्दाजी से कहने लगी कि बहिन ! हमारे पतिदेवकी बात असत्य कभी नहीं हो सकती। इसलिए कल ही पिताजीको बुलवाकर तुम्हारे लिए नये भानन्दकी व्यवस्था करूँगी । विशेष क्या? सम्राट के हाथमें तम्हारा हाथ मिलाकर पिताजीके हाथसे जलधारा डलवाऊंगी जिससे तुम दोनों का परस्परका बिबाद धुल जाय । इस प्रकार कहकर वह कुसुमाजी अपनी बहिनके पास जाकर कहने लगी कि वहिन ! अब तो मंगलोत्सव हो गया ऐसा समझ लो । परन्तु पुरुषोंको उत्तर देना स्त्रियोंका धर्म नहीं है, इसलिये जो दोष लुमसे हुआ है उसे अब किसी प्रकार दूर करो। इतनी देरतक तुम मेरे लिए उपदेश दे रही थी, परन्तु स्वयं तुम बुद्धिमती होकर भी नहीं जानती हो। आश्चर्य है। आवो पतिदेवको
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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