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________________ पट्टदकल | 53 पट्टदकल अवस्थिति और मार्ग रेल-मार्ग द्वारा यहाँ पहुँचने के लिए बादामी रेलवे स्टेशन सबसे पास पड़ता है जो कि हुबली-शोलापुर रेलवे-मार्ग पर है और बागलकोट के बाद आता है। रेलयात्री को बादामी रेलवे स्टेशन से बादामी नगर बस-स्टैण्ड आना पड़ता है जो कि स्टेशन से चार-पाँच कि. मी. दूर है। बस-स्टैण्ड से बसों के अतिरिक्त टेम्पो, मेटाडोर भी स्टैण्ड के बाहर खड़े मिलते हैं। इस प्रकार बादामी से पट्टदकल जाना और वापस आना अधिक सुविधाजनक है। ऐहोल से भी पट्टदकल आने-जाने के लिए बसें हैं किन्तु बहुत ही कम हैं और जाने वाली तथा वापस आने वाली बसों के समय में अन्तर भी बहुत कम है। इसलिए पर्यटक को असुविधा हो सकती है। सड़क-मार्ग द्वारा बादामी से पट्टदकल 29 कि. मी. और ऐहोल से 21 कि.मी. की दूरी पर है । पर्यटक-बस या निजी वाहन वाले लोगों के लिए बागलकोट-ऐहोल–पट्टदकलबादामी यात्रा ठीक है। किन्तु सार्वजनिक वाहन द्वारा यात्रा करने वालों को बादामी से ही यहाँ आना जाना ठीक रहेगा। क्षेत्र-दर्शन पट्टदकल के मन्दिरों आदि को देखने के लिए कम-से-कम आधे दिन का न्यनतम समय आवश्यक है। शिलालेखों में इस स्थान का नाम 'पट्टद किसुवलल' दिया गया है। यह स्थान मलप्रभा नदी के किनारे बसा हुआ है। जहाँ सार्वजनिक बस रुकती हैं वहीं भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा निर्मित एक सुन्दर उद्यान में दस जैनेतर मन्दिरों का एक समूह दर्शनीय है। ऐसा उल्लेख पाया जाता है कि ऐहोल, बादामी या पट्टदकल-इन तीन स्थानों में से किसी एक स्थान के मन्दिर में चालुक्य राजाओं का राज्याभिषेक हुआ करता था। पट्टदकल भी उन स्थानों में से एक है जहाँ कि मन्दिर निर्माण के प्रयोग हुए थे। यहाँ उत्तरभारतीय शैली के रेखा नागर प्रासाद (मन्दिर) हैं तो दक्षिण भारतीय विमान-शैली के मन्दिर भी हैं । यहाँ के जम्बूलिंग, काशी विश्वेश्वर और गलगनाथ मन्दिर शिखरमण्डित उत्तर भारतीय शैली के देवस्थान हैं तो संगमेश्वर, विरूपाक्ष और मल्लिकार्जुन मन्दिर दक्षिण भारतीय शैली-चौकोर छत तथा उत्तरोत्तर कम होते जाने वाले तलों से युक्त शिखरवाले मन्दिर हैं। ये मन्दिर तीसरी शताब्दी से लेकर नौवीं शताब्दी के बीच निर्मित हुए हैं। यहाँ खुले आकाश के नीचे एक संग्रहालय भी है। जैनेतर मन्दिरों में संगमेश्वर, विरूपाक्ष और मल्लिकार्जुन मन्दिरों की कला देखने लायक है। इनमें देवी-देवता, मिथुन, मौक्तिक मालाएँ, नरसिंह और रामायण, महाभारत तथा भागवत के दृश्य अंकित किए गए हैं। पट्टदकल का प्राचीन जैन मन्दिर-यह उपर्युक्त मन्दिर-समूह से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर बादामी जाने वाली सड़क के किनारे स्थित है। यह मन्दिर यहाँ
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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