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________________ 48 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) मत है। किन्हीं का मत है कि इसके कुछ भाग अधूरे ही रह गए। स्थिति जो भी हो, मन्दिर इस समय ध्वस्त अवस्था में है, यह बात इसके सामने का भाग देखने पर स्पष्ट हो जाती है। कहीं-कहीं इसकी दीवालों पर अंकन अधूरा रह गया है। इससे भी अनुमान होता है कि मन्दिर के निर्माण के समय पहले पत्थर जड़ दिए जाते थे और बाद में उन पर छेनी चलाई जाती थी। अर्थात् पहले से ही उत्कीर्णन करके स्तम्भ, दीवाल आदि खड़े नहीं किए जाते थे। जो भी हो, इसका अलंकरण अधिक सूक्ष्म है। यह मन्दिर दक्षिण भारतीय या द्रविड़ शैली का है। इसका शिखर भी अधूरा रह गया है या नष्ट हो गया है। मेगटी मन्दिर की चौकी या अधिष्ठान पर भी सुन्दर अंकन है। उस पर हाथी और गायक आदि उत्कीर्ण किए गए हैं। मध्यवर्ती दीवालों को शिलाओं पर देवकोष्ठ बने हैं जो अब मूर्तियों से रहित हैं । इसके स्तम्भ भी बलुआ पत्थर के हैं किन्तु वे उतने मोटे नहीं हैं जितने लाडखाँ या दुर्गा मन्दिर के । इस दृष्टि से भी यह उन्नत मन्दिर-निर्माण कला का उदाहरण है। इसके सामने का अग्रमण्डप या प्रवेश-मण्डप खुला है और अनेक स्तम्भों से युक्त है। इसमें स्तम्भों की संयोजना इस प्रकार की गई है कि एक प्रदक्षिणा-पथ ही बन जाता है । इस प्रकार यह एक सांधार या प्रदक्षिणा-पथ यूक्त मन्दिर माना जाता है । मन्दिर की दीवाल में कहीं-कहीं पत्थर की जाली का भी प्रयोग किया गया है । गर्भगृह या मूर्ति का मुख्य स्थान साधारण है। उसमें भी स्तम्भ का प्रयोग है । इस समय उसमें जो पद्मासन मूर्ति है वह खण्डित है। गर्भगृह से थोड़ा पीछे हटकर दो पार्श्व मन्दिर और हैं । इस कारण इसे त्रिकूट' या तीन मन्दिरों का समूह भी कहा जा सकता है। गर्भगृह के ऊपर भी एक चौकोर गर्भगृह दूसरी मंजिल पर है। उसमें भी साधारण पत्थर की वेदी पर पद्मासन तीर्थंकर की एक खण्डित मूर्ति है। इस मन्दिर में आचार्य रविकीर्ति का जो संस्कृत शिलालेख बाहर की ओर लगा है उससे प्रसिद्ध संस्कृत कवि कालिदास का समय-निर्धारण करने में भी सहायता मिली है। मन्दिर विशालकाय है और उसका अहाता भी बड़ा है। संस्कृत साहित्य के इतिहास, मन्दिर निर्माणकला के इतिहास (इसी मन्दिर की निर्माण-तिथि का पता शिलालेख से निश्चित रूप से चलता है) तथा जैन इतिहास की दृष्टि से यह मन्दिर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। मेगुटी मन्दिर में शासनदेवी अम्बिका की एक अनूठी मूर्ति है । देवी पैर-पर-पैर रखकर आम्रवृक्ष के नीचे आसीन है । उसके साथ अनुचर हैं । बाएँ पैर के पास एक सिंह है। एक परिचारक के पास उसका प्रिय पुत्र है जो देवी को पुत्र देते हुए प्रदर्शित है। . यहीं से 11वीं सदी की भट्टारक की एक मूर्ति प्रभामण्डल सहित प्राप्त हुई है जिसके वक्ष और कन्धों पर महीन वस्त्र है। वह यहाँ के शिव मन्दिर में है। यह मन्दिर पुरातत्त्व विभाग के संरक्षण में है। द्वितल गुफा मन्दिर-मेगटी मन्दिर के पास ही नीचे की ओर एक दो-मंज़िल या द्वितल गफा जैन मन्दिर है (देखें चित्र क्र. 15) । इस गफा-मन्दिर की लम्बाई लगभग 30-35 फुट है। इसके सामने के मण्डप या बरामदे के चार मोटे स्तम्भ और भित्ति स्तम्भ सामने ही दिखाई देते हैं । इन स्तम्भों और बाहर की चट्टानों पर कुछ नाम अंकित हैं। कुछ स्तम्भों पर छठी सदी के ब्राह्मी में लेख भी हैं।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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