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________________ 44 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) क्षेत्रों से गुजरती है, यात्री को असुविधा होती है । वास्तविक कठिनाई ऐहोल से पट्टदकल पहुँच में होती है। पट्टदकल से बादामी के लिए अनेक बसें हैं या मेटाडोर मिल जाती हैं । यदि कोई पर्यटक बादामी से पट्टदकल होते हुए ऐहोल बस द्वारा पहुँचना चाहे तो उसे पहले ऐहोल देखना चाहिए, उसके बाद पट्टदकल । कमटगी बागलकोट-अमीन गढ़ - ऐहोल मार्ग पर कमटगी (Kamatgi) नामक स्थान है । यहाँ की पार्श्वनाथ बसदि में भी 10वीं से 17वीं शताब्दी तक की पार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ एवं चौबीसी की मनोहारी प्रतिमाएँ हैं । पद्मासन में पार्श्वनाथ की कांस्य प्रतिमा पर फण हैं। धरणेन्द्र और पद्मावती के अतिरिक्त प्रतिमा के साथ नौ ग्रहों का उत्कीर्णन ध्यान देने योग्य है । इसी मार्ग पर बागलकोट से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर कृष्णा नदी के बाएँ तट पर जैनपुर नामक एक गाँव है। कर्नाटक सरकार के बीजापुर सम्बन्धी गज़ेटियर में लिखा है कि इस गाँव का नाम यहाँ के प्राचीन जैन निवासियों के कारण पड़ा होगा। यहाँ अब जैन मन्दिर नहीं है । ऐतिहासिक महत्त्व ऐहोल गाँव किसी समय चालुक्य राजाओं की राजधानी रहा है। इसके अतिरिक्त यह व्यापार का भी एक प्रमुख केन्द्र था । सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य तो यह है कि यह 'मन्दिरों की नगरी' था। बताया जाता है कि यहाँ किसी समय लगभग 150 मन्दिर थे । किन्तु अब यहाँ लगभग 70 मन्दिरों के अवशेष देखे जा सकते हैं । ये मन्दिर जैन, वैष्णव और शैव सम्प्रदायों सम्बन्धित हैं । मन्दिरों के अतिरिक्त यहाँ गुफा मन्दिर भी हैं । वास्तुविदों का मत है कि यहाँ कुछ शताब्दियों तक विभिन्न शैलियों के मन्दिरों के निर्माण के प्रयोग चलते रहे । किन्तु विभिन्न शैलियों के मन्दिर के निर्माण में यह बात अधिक सम्भव लगती है कि चालुक्य राजा उत्तर भारत और दक्षिण भारत को मिलाने वाले प्रदेश पर शासन करते थे । उनका राज्य उत्तर में नर्मदा (गुजरात, मालवा) तक और दक्षिण में समुद्र तट से समुद्र तट तक था । उन दिनों जब भी किसी प्रदेश पर विजय प्राप्त की जाती थी, तब जीते गये प्रदेश के कारीगरों, शिल्पियों को भी विजयी राजा अपने साथ ले जाते थे । शायद यही कारण है कि ऐहोल, पट्टदकल और बादामी, इन समीपस्थ स्थानों में उत्तर भारत के शिखरवाले मन्दिर और दक्षिण भारत को विमान शैली के मन्दिर देखने को मिलते हैं । जो भी हो, ऐहोल के मन्दिर निर्माण प्रारम्भिक अवस्था के अच्छे उदाहरण हैं । उपर्युक्त अधिकांश मन्दिरों का निर्माण चालुक्य और राष्ट्रकूट राजाओं के शासनकाल हुआ था । ऐहोल स्थित 'मेगुटी' नामक जैन मन्दिर में आचार्य रविकीर्ति रचित जो शिलालेख लगा है उससे चालुक्य वंश की वंशावलो प्राप्त होती है । अनुश्रुति है कि चालुक्य राजाओं का मूल पुरुष अयोध्या से दक्षिण भारत में आया था । जो भी हो, इस वंश का संस्थापक जयसिंह माना जाता है जो कि पाँचवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ है । वह जैनाचार्य गुणचन्द्र वसुचन्द्र और वादिराज का आदर करता था । उसकी
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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