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________________ 42 | भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) किनारा लगभग एक किलोमीटर लम्बा एवं भव्य है । अरब समुद्र का पानी किनारे पर कुछ मटमैला है। गहरी बारीक मटमैली रेती की इसके किनारे बहुत लम्बी-चौड़ी कालीन बिछी है, ऐसा लगता है। वास्को डि-गामा और कलंगुट दोनों ही स्थानों के लिए सरकारी बसें चलती हैं । कलंगुट से वापस पणजी लौटना चाहिए। इस प्रकार पर्यटक को गोआ की यात्रा समाप्त कर वापस बेलगाँव आना चाहिए ताकि वह कला एवं इतिहास के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के चार स्थानों-ऐहोल, पट्टदकल, बादामी और हम्पी का कला-स्थापत्य वैभव देखने से वंचित न रह जाए। ये स्थान छोड़ देने लायक बिलकुल भी नहीं हैं। विशेष सूचना पणजी से बेलगाँव लौटने पर कुछ लोग यह सलाह दे सकते हैं कि वे बेलगाँव से सीधे धारवाड़ (लोंढ़ा से भी रास्ता है) होते हुए हुबली चले जाएँ । उत्तर भारत की पर्यटक बसें प्रायः यह मार्ग अपनाती हैं किन्तु ऐसा करने में पर्यटक का हित नहीं है । वह ऊपर लिखे कला-क्षेत्रों को देखने से वंचित रह जाता है। उन्हें देखकर धारवाड़-हुबली की ओर आने में कुछ किलोमीटर की बचत भी होती है। इसलिए बेलगाँव के बाद पर्यटक का अगला पड़ाव बागलकोट होना चाहिए। बागलकोट अवस्थिति एवं मार्ग बागलकोट बीजापुर जिले का एक तालुक है। सड़क-मार्ग द्वारा बेलगाँव से बागलकोट 140 कि. मी. है। रास्ता प्रायः वृक्षहीन छोटी पहाड़ियों से गुजरता है। बड़े गाँव दूर-दूर तक नहीं मिलते । लोकापुर नामक स्थान पर कुछ सुविधा मिलती है। पानी की व्यवस्था रखनी चाहिए। रास्ते में जैन मन्दिर नहीं हैं। वैसे यह नगर बीजापुर से भी सड़क-मार्ग (लगभग 90 कि. मी.) और रेल-मार्ग द्वारा भी जुड़ा हुआ है । शोलापुर से हुबली और बंगलोर से शोलापुर तक चलने वाली गोलगुंबज एक्सप्रेस यहाँ आती है। जो पर्यटक सार्वजनिक बसों या रेल द्वारा यात्रा कर रहे हों उन्हें यह सलाह दी जाती है कि वे बागलकोट में रेलवे स्टेशन के पास के किसी अच्छे होटल में ठहरकर, ऐहोल की यात्रा कर आवें । बागलकोट में टूरिस्ट बंगला नहीं है। बागलकोट का प्राचीन नाम बागडिगे (Bagadige) बताया जाता है। कहा जाता है कि यह नगर रावण के वजन्त्रियों (संगीतज्ञों) को दान में प्राप्त हुआ था।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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