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________________ बेलगांव | 31 सुन्दर नवकाशी है। आज भी इन स्तम्भों में से कुछ स्तम्भों की पालिश दर्शक को आश्चर्य में डाल देती है। अर्चक ऐसे स्तम्भ बता सकता है जिनकी चमकदार पालिश में यदि अपने हाथों की प्रतिच्छाया देखें तो स्तम्भों में आपको अपने हाथ-दो नीचे और दो ऊपर दिखाई देंगे। इसके अतिरिक्त कुछ स्तम्भों में से उसी तरह की ध्वनि उन पर हाथ से टिकटिक करने पर निकलती है जैसी धात के बने किसी पात्र आदि को बजाने पर निकलती है। ध्यान रहे ये स्तम्भ स्तम्भ मण्डप के बीच में नहीं हैं बल्कि उसके घेरे की परिधि में हैं। इनकी काली पालिश ऐसी लगती है जैसे वह कुछ दिनों पूर्व ही की गई हो। कुछ लोगों का यह भी कथन है कि यह मन्दिर 1400 वर्ष पुराना है। जो भी हो, कला के इतिहास में अपने कमल के कारण यह मन्दिर अपना विशेष स्थान रखता है। इसके मण्डप के वातायन (खिड़कियाँ) जालीदार हैं और आकर्षक हैं । ये बारहवीं सदी के आस-पास के जान पड़ते हैं। इस रचना को ध्यान से देखना चाहिए। पूरे कमल का फोटो लेना कठिन काम है। उपर्युक्त कमल बसदि के प्रवेश-द्वार के निचले मध्य भाग में एक नर्तक दल का अंकन है। गर्भगृह के सामने के चार स्तम्भों पर भी सूक्ष्म नक्काशी है। ____मन्दिर के मूलनायक नेमिनाथ हैं। बताया जाता है कि उनकी यह प्रतिमा लगभग 200 वर्ष पूर्व जंगल में मिली थी। नेमिनाथ अर्धपद्मासन में हैं। उनके पीछे बड़ा गोल भामण्डल अंकित है । यह अलंकरणहीन है, मकरतोरण और छत्रत्रय युक्त है । मूर्ति का लांछन शंख भी उत्कीर्ण है। भगवान नेमिनाथ का सिंहासन दो हाथियों के ऊपर निर्मित है। कल्पवृक्ष और कैवल्यवृक्ष भी अंकित हैं । प्रतिमा ग्यारहवीं सदी की जान पड़ती है और लगभग 7 फुट ऊँची है। _ 'कमल बसदि' के गर्भगृह में बायीं ओर सुमतिनाथ की प्रतिमा है। उन पर एक ही छत्र है और उनके यक्ष-यक्षी घुटनों तक (प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है ) उत्कीर्ण किये गए हैं। प्रतिमा मकर-तोरणयुक्त है, और उस पर कीर्तिमुख भी है। __ तीर्थंकर आदिनाथ सहित जो कि पद्मासन में हैं, एक अत्यन्त आकर्षक चौबीसी भी यहाँ है। मूलनायक पर छत्रत्रय हैं। वे उच्चासन पर विराजमान हैं। दोनों ओर चवरधारी हैं और यक्षयक्षी घुटनों तक यानी लघु आकृति में उत्कीर्ण हैं। शेष तीर्थंकर पद्मासन में हैं और एक-एक वर्तुल में अंकित हैं। ग्यारहवीं सदी की लगभग 3 फुट ऊँची एक पार्श्वनाथ प्रतिमा भी इस मन्दिर में है जिस पर छत्रत्रय और सप्त फणावलि है। वे उलटे कमलासन पर विराजमान हैं। आसन ऊँचा है उसमें कुछ दरारें हैं और उसकी मरम्मत की गई है। घुटनों तक यक्ष-यक्षी उत्कीर्ण हैं। इस मन्दिर में नवग्रह प्रतिमा (चित्र क्र. 12) दर्शनीय है। यह पाषाण की है और पान की आकृति में लगभग दस इंच की है। यह अठारहवीं सदी की जान पड़ती है। बसाद का शिखर छोटा एवं कटनीदार है। गर्भगृह के सामने का कोष्ठ खाली है (आम तौर पर उसमें भी प्रतिमाएँ हो मन्दिर की पत्थर की जालियों एवं स्तम्भों के अतिरिक्त उसकी निम्नलिखित तीन विशेषताएँ दर्शक को अपनी ओर विशेष रूप से आकर्षित करती हैं--- 1. विशाल एवं कलात्मक मण्डप की छत में उत्कीर्ण कमल का फूल, जिसकी 72 पंखुड़ियों
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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