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________________ 22 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) रचना अद्भुत है तथा वातावरण शान्त, सौम्य एवं प्रभावक है। अनुरोध है कि हर जैन पर्यटक को यह स्थान अवश्य देखना चाहिए । यहाँ की रचना के आगे दिये गये विवरण से ही तथ्य का निश्चय हो जायेगा। देशभूषण आश्रम से शान्तिगिरि क्षेत्र की थोड़ी-सी ऊँची पहाड़ी तक पक्की सड़क बनी हुई है। उस पर ट्यूबलाइट भी लगी हुई हैं। इसीलिए वहाँ तक पहुँचने के लिए बस या कार को किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती। वैसे आश्रम के कार्यकर्ता यात्रियों की सहायता करते हैं। आश्रम से ही शान्तिगिरि का परकोटा एवं शिखर आदि दिखाई देते हैं यद्यपि शान्तिगिरि डेढ़ कि. मी. दूर है। क्षेत्र-परिचय शान्तिगिरि क्षेत्र का एक परकोटा है जिसकी दीवालें लगभग दस-बारह फुट ऊँची हैं। उसका लगभग बीस-पच्चीस फट ऊँचा प्रवेशद्वार पाषाण निर्मित है। उसके ऊपर दो ध्वजस्तम्भ हैं और एक घड़ी लगी हुई है। क्षेत्र में प्रवेश करते ही नारियल के पेड़ (जोकि इस क्षेत्र में बहुत ही कम हैं) और शीतल हवा यात्री का स्वागत करती है। अहाता बड़ा है और अनेक बसें या कार आदि ठहरायी जा सकती हैं। यात्रियों के लिए यहाँ एक धर्मशाला है जिसमें चालीस कमरे हैं । इसको दो मंज़िलें जमीन के ऊपर हैं तो एक जमीन के नीचे (अण्डरग्राउण्ड) । धर्मशाला क्षेत्र के आहते के बाहर किन्तु उससे बिलकुल सटी हुई है। इसका धरातल क्षेत्र से नीचा है। बिजली और पानी की अच्छी व्यवस्था है। मुनियों के लिए यहाँ पाँच भूमिगत गुफाएँ बनाई गयी हैं जो कि धर्मशाला से जुड़ी हुई हैं। इस स्थान से कुछ ही दूर पर पत्थरों की एक पाण्डुकशिला भी बनाई गयी है। क्षेत्र के अहाते के बाहर मुनि-निवास और क्षेत्र का कार्यालय है। यहाँ काफी बड़ा एक देशभूषण प्रवचन हॉल है जिसमें कोई न कोई त्यागी-व्रती धर्मोपदेश किया करते हैं । यह भी अहाते से बाहर है। क्षेत्र के कर्मचारियों की आवास-व्यवस्था भी अच्छी की गई है। शान्तिगिरि में यात्रियों के लिए निःशुल्क भोजन की व्यवस्था है। इसके लिए कार्यालय को कम से कम दो घण्टे पहले सूचना दे दी जानी चाहिए। सौ से दो सौ तक यात्रियों को एक साथ भोजन कराया जा सकता है। यदि यात्रियों की संख्या अधिक है तो यह अधिक अच्छा होगा कि क्षेत्र के कार्यालय को कुछ दिन पूर्व सूचना दे दी जाए क्योंकि क्षेत्र एक एकान्त पहाड़ी पर है और आवश्यक सामग्री का प्रबन्ध करने में देरी लग सकती है। क्षेत्र का प्रबन्ध उत्तम है। क्षेत्र-दर्शन बहुत से ऐसे तीर्थस्थान हैं जहाँ दर्शनीय मन्दिर, वन्दनीय कुलिकाएँ या कला-स्मारक तो अनेक हैं किन्तु स्वयं क्षेत्र की ओर से यह मार्गदर्शन नहीं मिलता कि वह दर्शन या वन्दना किस क्रम से प्रारम्म करें कि कोई भी महत्त्वपूर्ण या वन्दनीय मन्दिर आदि छूट न जाये। शान्ति
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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