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________________ 14 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) बीजापुर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 13 पर स्थित है। यह राजमार्ग एक ओर शोलापुर को जोड़ता है जो कि राजमार्ग क्र. 9 पर स्थित है, तो दूसरी ओर यह बंगलोर को बीजापुर से जोड़ता है। बीजापुर से शोलापुर 101 कि. मी. है और बंगलोर 579 कि. मी.। यहाँ से बेलगाँव, बंगलोर आदि स्थानों के लिए सरकारी आरामदेह बसें भी चलती हैं। बंगलोर-हुबली-शोलापुर छोटी लाइन (मीटर गेज) पर बीजापुर दक्षिण-मध्य (साउथसेन्ट्रल) रेलवे का एक प्रमुख रेलवे-स्टेशन है। यहाँ आने वाली लगभग सभी रेलगाड़ियाँ शोलापुर से हुबली तक चलती हैं। केवल गोलगुम्बज एक्सप्रेस शोलापुर से बंगलोर तक (हुबली होते हुए) चलती है। रेलमार्ग द्वारा बीजापुर से शोलापुर 110 कि.मी. है और बंगलोर 712 कि.मी. है। ___ भारत सरकार और कर्नाटक सरकार द्वारा बहुविज्ञापित बीजापुर अपनी गोल गुम्बद के लिए एक अत्यन्त आकर्षक एवं विस्मयकारी पर्यटक केन्द्र है। बीजापुर का प्राचीन नाम विजयपुर था जिसका उल्लेख सातवीं सदी के एक स्तम्भ एवं ग्यारहवीं सदी के 'मल्लिनाथ पुराण' में मिलता है। कन्नड़ में आज भी इसे वीजापुर (Vijapur) ही कहा जाता है। जैन पर्यटकों को भी यहाँ की यात्रा, अन्य दर्शनीय स्थानों के लिए भी, अवश्य करनी चाहिए। वे यहाँ यह देख सकते है कि यहाँ का सुन्दर एवं विशाल जैन मन्दिर मस्जिद के रूप में पन्द्रहवीं शताब्दी में परिवर्तित कर दिया गया। उसका नया नाम करीमुद्दीन या पुरानी मस्जिद है जो कि आरकिला (Arkilla) में स्थित है। उसके एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि वह एक जैन मन्दिर था और उसे एक यादव राजा ने भूमि का दान दिया था। यह मस्जिद आनन्दमहल से लगभग 200 गज की दूरी पर है। इसमें स्तम्भों पर रखे गए छत के पाषाण सीमेण्ट जैसी किसी चीज़ से जुड़े नहीं जान पड़ते। जैन मन्दिर वर्तमान में, बीजापुर में दो दिगम्बर जैन मन्दिर हैं । शहर का एक मन्दिर आदिनाथ मन्दिर है जो कि प्राचीन है। शहर के केन्द्र में और बस-स्टैण्ड से कुछ दूरी पर मुख्य मार्ग (महात्मा गांधी रोड) के बीचों-बीच (बाज़ार के पास) गाँधी जी की एक मूर्ति है, उसके आगे नारियल बाज़ार है, उससे आगे महावीर रोड और वहीं है रामगली जहाँ कि यह मन्दिर स्थित है। इस जैन मन्दिर के ठीक सामने ही राम मन्दिर भी है जो कि वहाँ पहुँचने के लिए एक पहचान-चिह्न का काम करता है। आदिनाथ मन्दिर अन्य मकानों के साथ पंक्ति में लगा होने के कारण बाहर से एक साधारण तिमज़िला मकान लगता है। स्पष्ट है कि उसका सामने का एव कुछ अन्य भाग फिर से बनाया गया है । अन्दर गर्भगृह पत्थर का है। वेदी साधारण है। उसके सामने के हॉल की छत लकड़ी की है । स्तम्भ भी लकड़ी के हैं । मन्दिर में ग्यारहवीं सदी से लेकर बीसवीं सदी तक की प्रतिमाएँ हैं। संगमरमर की पीछे कुंडली वाली सप्तफणी पार्श्वनाथ की प्रतिमा
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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