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________________ कल्याणी (बसवकल्याण) / 7 और समता आदि श्रेष्ठ तत्त्वों का अत्यन्त प्रभावशाली शैली से उपदेश दिया था। 'कायक वै कैलास” अर्थात् कर्म ही कैलास है। उपर्युक्त उद्घोष उनका मूल मन्त्र था । इस प्रकार उन्होंने अपने से श्रेष्ठ तत्त्वज्ञान का महत्त्व जनता के मानस-पटल पर अंकित किया था। उन्होंने श्री राम का त्याग, श्रीकृष्ण का योग, महावीर की अहिंसा, बद्ध को अनुकम्पा, ईसामसीह का प्रेम और महम्मद पैगम्बर आदि के महान तत्त्वों को अपने में समावेश कर लिया था। श्री बसवेश्वरजी के आकर्षक व्यक्तित्व ने असंख्य शिवशरणों तथा शिवशरणियों को कल्याण की पावन भूमि को ओर आकर्षित किया था। कल्याण के अनुभवमण्डप में प्रथम बसववादी प्रमथ अल्लम प्रभु की अध्यक्षता में अनुभव या विचार किया करते थे। पवित्र स्थानों के दर्शनार्थ स्वागत ।-टाउन म्युनिसिपल कौंसिल' __ इस उद्धरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि वीरशैव मत के संस्थापक श्री बसवेश्वर ने जब अपना मत चलाया तब कल्याणी में महावीर के उपदेशों को पावनधारा बह रही थी जिसे वहाँ के सम्माननीय नागरिक आज भी स्मरण करते हैं। साथ ही यह तथ्य भी उभरता है कि वीरशैव मत में भी महावीर के सिद्धान्त गुंथे हुए हैं। श्री बसवेश्वर कल्याणी के चौलुक्यवंशी जैन राजा बिज्जल के शासनकाल में बिज्जल के प्रधानमन्त्री थे। सम्भवतः वे जैन थे या जैनधर्म से प्रभावित थे। उन्होंने अपना नया पन्थ चलाया था जो वीरशैव मत कहलाया। चौलुक्य राजाओं की राजधानी पहले मान्यखेट (आधुनिक मलखेड) में थी। वहाँ से हटकर उन्होंने कल्याणी को अपनी राजधानी बनाया था। दसवीं से बारहवीं सदी के बीच कल्याणी देश की सबसे समृद्ध, और सबसे सुन्दर नगरी थी। वह एक जैन साम्राज्य की राजधानी थी । यहाँ विद्वानों का भी जमघट रहा करता था। कर्नाटक सरकार का पर्यटन विभाग भी कल्याणी का उल्लेख जैन राजाओं की प्राचीन राजधानी के रूप में करता है और पर्यटकों को उसकी ओर आकर्षित करता है । अब भी वहाँ चौलुक्य राजाओं द्वारा बनाया गया क़िला (मुस्लिमों द्वारा कुछ परिवर्तित), उसके विशाल द्वार तथा क़िले की दीवारों पर जैन और हिन्दू मूर्तियों के चिह्न देखे जा सकते हैं। यह किला बहुत विशाल रहा होगा। किले में लकड़ी के बड़े-बड़े खम्भे, शहतीर (बीम्स) और उन पर की गयी नक्काशी आज भी दर्शनीय है। उपर्युक्त क़िले के अन्दर एक सरकारी संग्रहालय भी है जिसमें दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी की अनेक जैन मूर्तियाँ संगृहीत हैं । इनकी संख्या 15-16 है। कोई तीर्थंकर मूर्ति खड्गासन में खण्डित है तो कोई पद्मासन में । कोई मस्तक विहीन है तो किसी का निचला भाग गायब है। (देखें चित्र क्र. 3)। कुछ मूर्तियाँ समाधिमरण का दृश्य अंकित करती हैं । एक मूर्ति पर नागकुमार और उसकी पत्नी का अंकन है जो कि सम्भवतः धरणेन्द्र और पद्मावती हो सकते हैं। (देखें चित्र क्र. 4)। कल्याणी में जैनधर्म की स्मृति दिलाने वाला चौ लुक्यकालीन एक ध्वस्त जैन मन्दिर, बाजार स्थित जामा मसजिद के निकट मुख्य सड़क के पास कुम्हारों की बस्ती में, खंडहर के रूप में छितरा हुआ है।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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