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________________ 292 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थं (कर्नाटक) की लगभग डेढ़ फुट ऊँची मकर-तोरण एवं छत्रत्रयी से सज्जित तीर्थंकर प्रतिमा है । उसके दोनों ओर पद्मासन तीर्थंकर हैं जिन्हें मिलाकर चौबीसी बनती है । और भी प्रतिमाएँ हैं । गर्भगृह के बाहर धरणेन्द्र और पद्मावती भी प्रतिष्ठित हैं । ठहरने की सुविधा - यह बोडिंग होम विद्यार्थियों के लिए है । इस कारण यदि कोई विद्यार्थी आए तो उसे पहले जगह दी जाती है, बाद में यात्रियों को । जब छुट्टियाँ होती हैं तब भी यात्रियों को जगह देने का प्रयत्न किया जाता है। वास्तव में, यहाँ ठहरने की पक्की सुविधा नहीं है यह बात ध्यान में रखनी चाहिए। मैसूर में अन्यत्र जैन यात्रियों के लिए धर्मशाला जैसी अन्य कोई सुविधा नहीं है । उन्हें आस-पास के होटलों में ( बाज़ार के आस-पास की) ठहरना पड़ता है। वैसे इसी बोर्डिंग हाउस के पास 'चामुण्डी वसतिगृह' नामक लॉज है जो जैन स्वामित्व है। वहीं से गोम्मटगिरि सम्बन्धी पूरी जानकारी, वाहन की सुविधा और शहर के दर्शनीय स्थलों के भ्रमण का भी प्रबन्ध हो जाता है । जैसी भी स्थिति हो, गोम्मटगिरि के लिए यहाँ से पर्याप्त मार्गदर्शन उपलब्ध होगा । उपर्युक्त मन्दिर के पास, संगम सिनेमा के पास ही तीर्थंकर रोड है । इस मार्ग पर सुमतिनाथ श्वेताम्बर मन्दिर दूसरी मंज़िल पर है। गर्भगृह संगमरमर का है और वेदी चाँदी की है । 2. एक साधारण सा दिगम्बर जैन मन्दिर स्थानीय नगरपालिका कार्यालय के पास है । यह स्थान मुख्य बाज़ार और घण्टाघर चौक के पास ही है । 3. श्री दिगम्बर जैन मन्दिर ( महल के सामने ) – मैसूर महाराजा के राजमहल के सामने ( सिटी बस स्टैण्ड के नज़दीक ) सड़क पार करके, चोल राजाओं के जमाने (दसवीं सदी) का प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर है । केन्द्रीय तारघर और स्टैट बैंक ऑफ इण्डिया के निकट वनमय्या कॉलेज के ही अहाते में कोने पर यह मन्दिर स्थित है । उसके आस-पास लगभग नौ फुट ऊँची पाषाण की कंगूरेदार दीवाल है । अनुश्रुति है कि किसी समय यह मन्दिर राजमहल की सीमा या परकोटे के अन्दर था । उस समय जैन मन्त्री आदि हुआ करते थे किन्तु किसी समय उसे महल की सीमा से बाहर कर दिया। बताया जाता है कि कुछ समय बाद महल में आग लग गई और आगे चलकर वर्तमान नया महल बनवाया गया। मंदिर के सामने ही महल का परकोटा दिखाई देता है । इसकी मुंडेर पर सरस्वती की मूर्ति है इसका शिखर छोटा है किन्तु है द्रविड़ शैली का । उसके तीन स्तर हैं । उनमें पद्मासन तीर्थंकर और सिंह आदि प्रदर्शित हैं । मन्दिर के प्रवेश का जो सबसे पहला द्वार है उसके सिरदल पर पद्मासन तीर्थंकर विराजमान हैं । पाषाण निर्मित द्वारपाल हैं । उसके बाद खुला आँगन है । दूसरे प्रवेशद्वार पर भी पद्मासन तीर्थंकर अंकित हैं । नीचे की ओर इन्द्र-इन्द्राणी बनाए गए हैं। उसके बाद अनेक स्तम्भों वाला सभामण्डप है । गर्भगृह के प्रवेशद्वार पर मूँछोंवाले द्वारपाल हैं । धरणेन्द्र- पद्मावती की भी मूर्तियाँ हैं। प्रथम कोष्ठ में पीतल की प्रतिमाएँ हैं । मुख्य गर्भगृह में शान्तिनाथ की छत्रत्रयी, मकरतोरण और कीर्तिमुख से अलंकृत लगभग ढाई फुट ऊँची कायोत्सर्ग प्रतिमा है । मन्दिर पाषाणनिर्मित है ।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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