SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 382
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 274 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) श्रवणबेलगोल का यह मन्दिर एक शिलालेख में 'सरस्वती मंडप' भी कहा गया है। इसी प्रकार एक और शिलालेख में इसे 'गोम्मटपुर (श्रवणबेलगोल ) का मोहक आभूषण' कहा गया है। भण्डारी बसदि के शिलालेख बहुत लम्बे, बहुत-सी जानकारी देने वाले और बड़े ऐतिहासिक महत्त्व के हैं । उपर्युक्त बसदि में पूर्व की ओर के एक स्तम्भ पर सन् 1368 ई. का, विजयनगर शासक बुक्कराय का एक शिलालेख है । उसमें उल्लेख है कि वैष्णव धर्मानुयायी इस राजा के राज्य में जैनों और वैष्णवों में झगड़ा हो गया। तब इस राजा ने दोनों सम्प्रदायों में मेल कराया । (देखिए हम्पी प्रकरण) । श्रवणबेलगोल में जैन मन्दिरों की पुताई और जीर्णोद्धार के लिए किस प्रकार द्रव्य लिया जाएगा इसका भी विवरण है। उल्लंघन करने वाला 'गंगा तट पर एक कपिल गाय और ब्राह्मण की हत्या का भागी होगा ।' दोनों संघों ने मिलकर बुसुवि सेट्टी को संघनायक बनाया था । एक अन्य स्तम्भ पर 1158 ई. का एक लम्बा शिलालेख है । उसमें होय्सल वंश के नरेशों के प्रताप आदि के वर्णन के बाद होय्सलनरेश नरसिंह के मान्य मन्त्री एवं चमूप ( सेनापति ) हुल्ल द्वारा अनेक जैन मन्दिरों के निर्माण एवं पुनरुद्धार, पुराण सुनने में उनकी रुचि, आहारादि दान में उत्साह और बंकापुर एवं कोप्पण में मन्दिरों के निर्माण आदि का कथन है । इस शिलालेख के 22वें श्लोक में एक बड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी है जो इस प्रकार है स्थिर - जिन - शासनोद्धरणरादियोलारेने राचमल्ल भूवर वर - मन्त्रि रायने बलिक्के बुध-स्तुतनप्प विष्णु भूवर वर - मन्त्रि गंगणने मत्ते बलिक्के नृसिंह- देव भूवर वर - मन्त्रि हुल्लने पेरंगिनितुल्लडे पेल्लागदे ॥ ( यदि पूछा जाए कि जैन धर्म के सच्चे पोषक कौन हुए तो इसका उत्तर यही है कि प्रारम्भ में राचमल्ल नरेश के मन्त्री राय (चामुण्डराय) हुए, उनके पश्चात् विष्णुनरेश के मन्त्री गंगण (गंगराज) हुए और अब नरसिंहदेव के मन्त्री हुल्ल हैं । (अनुवाद - जैन शिलालेख संग्रह भाग - 1 ) एक अन्य शिलालेख में हुल्लराज द्वारा उपर्युक्त मन्दिर के लिए सवणेरू ग्राम का दान करने तथा मुनि चन्द्रदेव द्वारा चन्दा एकत्रित करने का उल्लेख है । एक बहुत लम्बे लेख में होय्सल नरेश द्वारा इस मन्दिर का नाम 'भव्यचूडामणि' रखने आदि का विस्तृत वर्णन है। पाण्डुक शिला - भण्डारी बसदि के सामने एक भव्य पाण्डुक शिला है । उस पर द्रविड़ शैली का बहुत अच्छा उत्कीर्णन है । जैन मठ प्राप्त जानकारी के अनुसार यह मठ (चित्र क्र. 105 ) सम्भवतः चामुण्डराय के समय से स्थापित है। उन्होंने आचार्य नेमिचन्द्र से यहाँ की गोमटेश्वर महामूर्ति के संरक्षण करने का आग्रह किया था । कुछ विद्वानों के अनुसार, मठ बारहवीं सदी में निश्चित रूप से विद्यमान था ।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy