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________________ श्रवणबेलगोल | 273 मंगायिं एक नर्तकी थी । तीन और शिलालेखों में इस मन्दिर के लिए दान देने तथा जीर्णोद्धार कराने का उल्लेख है । इसकी प्रवेश-सीढ़ियों के दोनों ओर दो अत्यधिक अलंकृत हाथी प्रदर्शित हैं। उनके गले में मोतियों को पाँच-पाँच मालाएँ पड़ी हुई हैं। उनकी झूल भी बहुत अलंकृत है। गर्भगृह से बाहर लगभग पांच फुट ऊँचे दो द्वारपाल हैं । वे ऊँचा मुकुट पहने हुए हैं। गर्भगृह में शान्तिनाथ की लगभग पाँच फुट ऊँची मूर्ति है। इसके अतिरिक्त महावीर स्वामी की लगभग साढ़े पाँच फुट उन्नत भव्य प्रतिमा भी यहाँ प्रतिष्ठित है। शान्तिनाथ की प्रतिमा पर के लेख से ज्ञात होता है कि उसकी प्रतिष्ठा विजयनगर के शासक देव राज प्रथम (1406-1416 ई.) की रानी भीमादेवी ने कराई थी। भण्डारी बसदि (भव्यचडामणि मन्दिर)-इस बसदि (चित्र क्र. 104) का निर्माण होयसलनरेश नरसिंह प्रथम के भण्डारी या कोषाध्यक्ष एवं मन्त्री हुल्लराज ने 1159 ई. में कराया था। इस कारण यह मन्दिर भण्डारी बसदि कहलाया। वास्तव में इसका नाम चतुर्विंशति (चौबीसी) मन्दिर था। जब यह विशाल एवं सुन्दर मन्दिर बनकर तैयार हुआ तो होय्सलनरेश नरसिंह प्रथम हलेबिड (द्वारावती) से स्वयं वहाँ आया और मन्दिर को देखकर इतना प्रसन्न हुआ कि उसने इसका नाम 'भव्य चूड़ामणि' रख दिया। वैसे हुल्लराज की भी एक उपाधि 'सम्यक्त्वचूडामणि' थी। भण्डारी बसदि श्रवणबेलगोल के मन्दिरों में सबसे बड़ा मन्दिर है । उसकी लम्बाई 266 फुट और चौड़ाई 78 फुट है। उसके चारों ओर लगभग 12 फुट ऊँचा एक परकोटा बना है। मन्दिर के सामने लगभग 35 फुट ऊँचा एक मानस्तम्भ भी है। उपर्युक्त मन्दिर दिगम्बर जैन मठ के सामने स्थित है। इसकी सीढ़ियों के अँगले पर कमल के फूलों का सुन्दर अंकन है। प्रवेशमंडप में गजलक्ष्मी अंकित है अर्थात् दो हाथी लक्ष्मी का अभिषेक करते दिखाये गये हैं। प्रवेशद्वार पर पूर्णकुम्भ भी अंकित है। इसके सभामंडप में विशाल या मोटे स्तम्भों की संयोजना है। नवरंग में और उससे आगे तथा बरामदे में दस फट के चौकोर पत्थर फर्श में लगाए गए हैं। इन्हें किस प्रकार यहाँ लाया गया होगा यह भी एक आश्चर्य का विषय है । नवरंग के द्वार पर लता-वल्लरियों, मानवों और पशुओं का मनोहर उत्कीर्णन है। इस मन्दिर में सुन्दर नक्काशीदार प्रवेशद्वार के ऊपर नृत्य करते हुए इन्द्र का अंकन सबसे मन्दर कलाकृति है। इन्द्र के बारह हाथ दिखाए गए हैं और अन्य वादक-वन्दों सहित इस अंकन में कितनी सूक्ष्म एवं आकर्षक तथा आश्चर्यकारी नक्काशी है यह चित्र से भलीभाँति जाना जा सकता है । इसी प्रकार स्तम्भों पर भी नृत्यांगनाओं के चित्र सुन्दर बन पड़े हैं। मन्दिर में तीन प्रवेशद्वार हैं जिनके कारण यह कई भागों में बँटा हुआ-सा जान पड़ता है। ___- गर्भगृह में एक ही वेदी पर चौबीस तीर्थंकरों की लगभग तीन फुट ऊँची काले पाषाण की अन्य मूर्तियाँ एक ही पंक्ति में विराजमान की गई हैं। वे भी मकर-तोरण से सज्जित हैं । छत में कमल का अंकन भी है। बसदि में आसीन मुद्रा में ब्रह्मयक्ष की मूर्ति है । पद्मावती एवं सरस्वती की भी सुन्दर प्रतिमाएँ हैं । यहाँ एक सहस्रकूट जिनबिम्ब भी है जो तीन स्तरों में विभाजित है। प्रत्येक स्तर में एक खड्गासन प्रतिमा भी है।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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