SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रवणबेलगोल | 271 आभूषण और वस्त्र, पहनावा, तथा वाद्य-यन्त्र आदि उस काल को हमारे समाने मूर्तिमान करते हैं। देवकुलिकाओं के शिखरों का दक्षिणी अंकन भी बहुत आकर्षक है। . मन्दिर के सभामण्डप की छतों में दिक्पाल और वर्गों में सुन्दर कमलों का अंकन भी देखने लायक है। कुल मिलाकर यह मन्दिर किसी भी कलाप्रेमी के लिए एक अच्छा संग्रहालय है। यदि यह पूरा बन पाता और इसे क्षति नहीं पहुँचाई गयी होती तो यह सुन्दरतम मन्दिरों में प्रमुख होता। उपर्युक्त मन्दिर के मूलनायक शान्तिनाथ की साढ़े पांच फुट ऊँची मूर्ति यहाँ प्रतिष्ठित है। ___ और अब सड़क-मार्ग से श्रवणबेलगोल गाँव की ओर । रास्ते में खदान से पत्थर निकालने के प्रयत्न और चन्द्रगिरि या कटवप्र (समाधि-शिखर) की खड़ी दीवाल-जैसी देखी जा सकती है। श्रवणबेलगोल गाँव के मन्दिर अक्कन बसदि-गाँव के मन्दिरों में सबसे पहला मन्दिर है अक्कन बसदि। अक्कन का अर्थ है बड़ी बहन। इस मन्दिर के द्वार के पास एक बहुत लम्बा शिलालेख है जिसके अनुसार होय्सलनरेश बल्लाल द्वितीय के ब्राह्मणमन्त्री चन्द्रमौलि की जैनधर्मावलम्बी पत्नी अचियक्क (आचलदेवी) ने इस मन्दिर (चित्र क्र. 103) का निर्माण कराया था तथा राजा ने बम्मेयनहल्ली नामक गाँव दान में दिया था। इस मन्दिर में उच्च होय्सल कला देखी जा सकती है। यह बेलूर के मन्दिर के समान तारे की आकृति में बना है। मुखमण्डप के कोणीय स्तम्भ भी आकर्षक हैं। द्वार की चौखट कलापूर्ण है और सिरदल पर पद्मासन तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। नवरंग में कसौटी पाषाण के, चमकदार पॉलिश वाले स्तम्भ हैं। उन पर चूड़ियों जैसे वलय हैं और बारीक मोतियों की मालाएँ उत्कीर्ण हैं। लगभग डेढ़ इंच की पट्टी में भी बड़ी कुशलतापूर्वक नक्काशी की गई है। पत्रावली और सक्ष्म कमल मन मोह लेते हैं। गर्भगह के बाहर पत्थर की जाली है। उसके प्रवेशद्वार के सिरदल पर पुनः पद्मासन तीर्थंकर विराजमान हैं । मूलनायक पार्श्वनाथ की पाँच फुट ऊँची कायोत्सर्ग प्रतिमा पर सात फणों की छाया है। प्रभावली में चौबीस तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। मन्दिर की छत पर अन्दरूनी सूक्ष्म नक्काशी है। बसदि का बाहरी भाग और भी आकर्षक है। उस पर होय्सल शैली का उत्कीर्णन है। अलंकृत हाथी, अश्व, गाय-बछड़ा, सूर्य-चन्द्र, पत्रावली। पद्मासन तीर्थंकर, छत्रत्रयी, चँवरधारी, आदि की सुन्दर संयोजना है। बाहर यक्ष धरणेन्द्र और यक्षी पद्मावती की प्रतिमाएँ भी हैं। शिखर लगभग 18 फुट ऊँचा है और वह एक महामेरु के समान बनाया गया है। यह शिखर अनेक तलों में है जिस पर पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियाँ स्थापित हैं। विशेषकर त्रि-तीर्थिक (तीन तीर्थंकरों) वाला भाग कीर्तिमुख से मण्डित है और दर्शनीय है। मन्दिर ध्यान से देखने योग्य है। यह बसदि नीले रंग की शिलाओं से बनी है। मन्दिर के बाहरी भाग को देखने से ऐसा लगता है कि इसकी नक्काशी का काम भी अधूरा रह गया। वर्तमान में यह मन्दिर भारतीय पुरातत्त्व विभाग के संरक्षण में है। यह मन्दिर श्रवणबेलगोल गाँव की उत्तरी सीमा सूचित करता है । इसके पास ही, एक मन्दिर के बरामदे
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy