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श्रवणबेलगोल | 259
नीचे तलहटी से भी दिखाई देता है।
___ कुल 222 सीढ़ियाँ चढ़ चुकने के बाद साफ़-सुथरी और सरल चट्टान पर चलना होता है। यहाँ से चन्द्रगिरि के मन्दिर-समूह का परकोटा और मानस्तम्भ दिखाई देते हैं। रास्ते में भी एक शिलालेख और चरण हैं । लेख शायद कन्नड़ में या किसी दक्षिण भारतीय लिपि में है। कुछ और आगे बढ़ने पर एक गोल-सी बड़ी चट्टान है। उस पर चरण हैं और उसके आस-पास कमल के फूल का घेरा है और कन्नड़ में लेख है। वहाँ जिसने भी समाधिमरण किया होगा उसने गोमटेश्वर महामूर्ति को देखते हुए शरीर त्यागा होगा, क्योंकि वहाँ से गोमटेश्वर स्पष्ट दिखाई देते हैं। इनके बाद आता है एक कुण्ड और उसके बाद हम परकोटे के समीप पहुँच जाते हैं।
परकोटा-चन्द्रगिरि मन्दिर-समूह एक परकोटे से घिरा हुआ है जिसकी लम्बाई 500 फट और चौड़ाई 225 फट है। इस परकोटे में तेरह मन्दिर, सात मण्डप, दो मानस्तम्भ और भरतेश्वर की एक मूर्ति हैं । इस परकोटा को 19वीं सदी के प्रारम्भ में पुट्टणसेट्टि ने बनवाया था।
परकोटे के प्रवेशद्वार के सिरदल पर पद्मासन तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं । द्वार के ऊपर शिखर है। सम्भवतः ब्रह्मयक्ष की मूर्ति है जिसके दोनों हाथ खण्डित जान पड़ते हैं।
कूगे ब्रह्मदेव स्तम्भ-उपर्युक्त द्वार से प्रवेश करते ही 30 फुट ऊँचा एक स्तम्भ दिखाई देता है जो कि कूगे ब्रह्मदेव स्तम्भ कहलाता है। इसके सामने कोई मन्दिर नहीं है, इसलिए इसे मानस्तम्भ कहना कठिन है। वास्तव में यह जैनधर्मावलम्बी गंगनरेश मारसिंह का स्मारक स्तम्भ है । इस नरेश ने अपने जीवन में अनेक जिनमन्दिर और मानस्तम्भ बनवाए थे तथा
वितार' की उपाधि ग्रहण की थी। इस स्तम्भ के चारों ओर जो शिलालेख है उससे यह जानकारी मिलती है कि इस नरेश ने अपने अन्तिम समय में राज्य का परित्याग करके तीन दिन तक सल्लेखना व्रत का पालन करते हुए अजितसेन भट्टारक के समीप बंकापुर में अपना शरीर 974 ई. में त्यागा था। इन्होंने राष्ट्रकूट-नरेश इन्द्रराज (चतुर्थ) का राज्याभिषेक किया था, मान्यखेट के नृप कृष्णराज की सेना को, गुर्जरेश, बनवासीनरेश, नोलम्बशासक, चौड़नरेश, चेर, चोल, पाण्ड्य, पल्लव नरेशों को परास्त किया था तथा अनेक दुर्ग जीते थे । उनकी उपाधियाँ थीं-गंगचूड़ामणि, गंगसिंह, गंगकंदर्प, कोगणिवर्मधर्ममहाराज आदि। इन्हीं मारसिंह के उत्तराधिकारी थे-राचमल्ल (चतुर्थ) जिनके सेनापति और मन्त्री चामुण्डराय ने गोमटेश्वर महामूर्ति का निर्माण कराया।
उपर्युक्त स्तम्भ कलात्मक है। उसकी चौकी आठ हाथियों पर आधारित थी किन्तु अब कुछ ही हाथी शेष बचे हैं। चौकी चार स्तरों की है। सबसे ऊपर एक चौकोर आसन पर ब्रह्मयक्ष की तीन फुट ऊँची पद्मासन प्रतिमा है । आसन से घण्टियाँ लटकती प्रदर्शित हैं।
उपर्युक्त स्तम्भ से बाएँ मुड़ने पर बलिपीठ है । उसकी एक शिला पर दो चरण एवं लेख
शान्तिनाथ बसदि-बायीं ओर यह सबसे पहला किन्तु छोटा मन्दिर है। इसके मूलनायक शान्तिनाथ हैं। उनकी खड्गासन प्रतिमा काले पाषाण की है और 12 फुट 10 इंच ऊँची है। फलक मूर्ति के घुटनों तक ही है। मूर्ति के पीछे या आस-पास किसी प्रकार का आधार नहीं है। इससे अनुमान होता है कि मूर्ति का कुछ आधार-भाग जमीन के अन्दर भी होगा। एक अनुश्रुति