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________________ 250 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) एक गोलाकार घेरे में लेख सहित चरण 460वीं और 470वीं सीढ़ियों के बीच के स्थान में उत्कीर्ण हैं। भरत मन्दिर और बाहुबली मन्दिर-सिद्धशिला के बायीं ओर एक छोटा-सा बाहबली मन्दिर है। उसमें शिलालेख भी है । बाहुबली की यह मूर्ति लगभग पाँच फुट ऊँची है । माधवी लता के एक वेष्टन (लपेट) ने उनकी जंघा को घेरा है जबकि उनकी बाहों पर दो वेष्टन हैं। मूर्ति पर न कोई सर्प प्रदर्शित है और न ही कोई बाँबी । हाँ, मूर्ति के आस-पास विद्याधर देवियाँ लताओं को हटाते हए अंकित की गई हैं। मकर-तोरण भी है। दाहिनी ओर इसी प्रकार की भरतेश्वर (मुनिरूप में चक्रवर्ती भरत) की इसी आकार की मूर्तिवाला छोटा-सा मन्दिर है। मूर्तियों के आलेख के अनुसार, सिद्धान्तदेव के शिष्य दण्डनायक भरतमय्य ने यहाँ के प्रवेशद्वार की शोभा बढ़ाने के लिए 1160 ई. में इन मूर्तियों का निर्माण कराया था। ये दोनों मन्दिर भी चट्टान को ही काटकर बनाए गए हैं। अखण्डबागिलु (अखण्ड-द्वार)-सीढ़ी संख्या 560 पर ही एक प्रवेशद्वार है । इस द्वार को अखण्ड कहने का कारण यह है कि यह एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है । यह भी अनुश्रुति है कि इसे स्वयं चामुण्डराय ने बनवाया था। __ अखण्डद्वार का सबसे आकर्षक भाग है उसका सिरदल । उस पर उत्तम कारीगरी की गई है। उसमें बीच में लक्ष्मी जी विराजमान हैं और उनके दोनों ओर दो हाथी सूंड में कलश लिये हुए उनका अभिषेक कर रहे हैं। गजलक्ष्मी का यह चित्र खण्डगिरि-उदयगिरि (उड़ीसा) के इसी प्रकार के चित्र की याद दिलाता है। अंकन की शोभा बढ़ाने के लिए हाथियों के दोनों ओर दो मकर जल उगलते दिखाए गए हैं और जल के ये छल्ले ऊपर तक गए हैं । इस प्रकार यह उत्कीर्णन बहत आकर्षक हो गया है। द्वार पर भी शिलालेख है। त्यागद ब्रह्मदेव स्तम्भ से यहाँ तक की सीढ़ियों की भी दण्डनायक भरतमय्य ने बनवाया था। ____ कंचन गुब्बि बागिलु-अखण्डद्वार के बाद कुछ और सीढ़ियां चढ़ने के बाद, एक और द्वार आता है जो कि 'कंचन गब्बि बागिलु' कहलाता है। इसके सिरदल पर भी गजलक्ष्मी का आकर्षक उत्कीर्णन है। द्वार की चौखट पर शृंखलाओं का अंकन सुन्दर है । नीचे की ओर द्वारपाल हैं। इस द्वार से जो मण्डप बनता है उसके भीतरी दो स्तम्भों पर मनोहारी उत्कीर्णन है। दाहिने स्तम्भ पर चारों ओर तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं। बीच में और नीचे नृत्यांगनाएँ या अप्सराएँ प्रदर्शित हैं। इनमें से एक के हाथ में धनुष है और एक स्त्री की चोटी पकड़े हुए दूसरी स्त्री उसका पैर पकड़ रही है। इसी स्तम्भ के पास एक शिला में 6-7 इंच की एक देवी है। स्त्रियाँ उसे पद्मावती की मूर्ति मानती हैं और सिंदूर लगा जाती हैं । अश्वारोही ब्रह्मयक्ष भी प्रदर्शित है । एक अन्य स्तम्भ पर ऊपर तीन ओर तीर्थंकर हैं । बीच में एक ओर गाय-बछड़ा, एक ओर ब्रह्मदेव और दो नर्तकियाँ या अप्सराएँ हैं। नीचे की ओर एक तरफ शरीफा जैसा फल लिये एक बन्दर है तो दूसरी ओर मृदंगवादक । इसी तरह तीसरी तथा चौथी ओर नर्तकियाँ या अप्सराएँ उत्कीर्ण हैं। परकोटे का महाद्वार-अखण्डद्वार से 21 सीढ़ियाँ और चढ़ने के बाद गोमटेश्वर मूर्ति
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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