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________________ 248 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) का कोष्ठ खाली है। ___ओदेगल बसदि-कन्नड़ में ओदेगल का अर्थ है टेक (Support) । यह मन्दिर एक ऊँची चौकी पर बना है। उस तक पहुँचने के लिए 28 सीढ़ियाँ चढ़कर जाना पड़ता है । इतनी ऊँचाई पर बने मन्दिर की चौकी को सहारा देने के लिए लगभग पन्द्रह फीट लम्बी शिलाएँ चारों ओर लगाई गई हैं। इसी कारण यह 'टेकेवाला' या 'ओदेगल बसदि' कहलाता है। इसे 'त्रिकूट' या तीन गर्भगृहों वाला मन्दिर भी कहते हैं। बीच के गर्भगृह में मूलनायक आदिनाथ की पद्मासन में काले पाषाण की विशाल प्रतिमा (साढ़े चार फीट) पाँच सिंहों के पादासनयुक्त कमलासन पर विराजमान है । मकर-तोरण, छत्रत्रय और कन्धों से ऊपर चँवरधारी की भी संयोजना है। दूसरे कोष्ठ में बाँई ओर शान्तिनाथ की मूर्ति पद्मासन में शोभित है। दाहिनी ओर के गर्भगृह में नेमिनाथ की भव्य प्रतिमा मकर-तोरण से सुसज्जित है। ये प्रतिमाएँ शिला में उकेरी गई हैं। मन्दिर का सभामण्डप बड़ा है। उसमें लगभग तीन फीट व्यास के चार मोटे पाषाणस्तम्भ हैं। मुखमण्डप में भी इसी प्रकार बारह स्तम्भ हैं। मन्दिर के चारों ओर लगभग दस फीट चौड़ा प्रदक्षिणा-पथ है। ऊँचाई की दृष्टि से विन्ध्यगिरि पर यह मन्दिर सबसे ऊँचा बसदि का निर्माण किसने किया यह पता नहीं लगता। वह प्राचीन ही है। उसके पश्चिम की ओर 27 लेख हैं जो कि यात्रियों के नाम हैं। यह मन्दिर 72 फीट लम्बा और 72 फीट चौड़ा है। त्यागद ब्रह्मदेव स्तम्भ-यह 'चागद कम्ब' भी कहलाता है (देखें चित्र क्र. 93) । चार स्तम्भों का यह खुला मण्डप 8 फीट चौड़ा और 8 फीट लम्बा है। इसके बीच में कुछ गोल वलयों (घेरों में) फूल-पत्तियाँ आकर्षक ढंग से उकेरी गई हैं। सबसे नीचे का भाग गले में माला पहने वृषभ पर आधारित है। कहा जाता है कि ग्यारह फीट ऊँचा यह स्तम्भ किसी समय अधर में लटका हुआ था और इसके नीचे से रूमाल निकाला जा सकता था। अब भी यात्री ऐसा करते हैं । अन्तर केवल इतना ही है कि अब इसका एक कोण झुककर नीचे लग गया है। इस प्रकार यह अपने सौन्दर्य और आश्चर्य दोनों के लिए प्रसिद्ध है। इसके निचले भाग में चामुण्डराय और उनके गुरु आचार्य नेमिचन्द्र का चित्र बना हआ है। दोनों किसी विषय पर चर्चा करते हुए प्रदर्शित हैं। चामुण्डराय के राजसी वैभव की सचक तीन सेविकाएँ उन पर चँवर ढला रही हैं। चामुण्डराय ने आभूषण पहन रखे हैं और उनके मस्तक पर केशों का जूड़ा है जो उस समय के लोग रखते थे। उपर्युक्त स्तम्भ का ऐतिहासिक महत्त्व है। अनुश्रुति है कि चामुण्डराय यहीं बैठकर शिल्पियों को पारिश्रमिक और दान दिया करते थे। इसके एक ओर जो शिलालेख है उसमें चामुण्डराय के प्रताप का वर्णन है और युद्धों में उनकी विजयों से सम्बन्धित उपाधियाँ हैं। अनुमान किया जाता है कि स्तम्भ के तीनों ओर उनके जीवन का वर्णन, विशेषकर गोमटेश्वर मति की निर्माण सम्बन्धी जानकारी और शिल्पी आदि का नाम रहा होगा। बताया जाता है कि स्वयं चामुण्डराय ने इसे 983 ई. में बनवाया था। किन्तु स्तम्भ के तीन ओर का लेख हेग्गडे कण्ण ने सन् 1200 में घिसवा डाला और अपना यह लेख खुदवा दिया कि उन्होंने इस स्तम्भ पर ब्रह्मयक्ष की मूर्ति प्रतिष्ठापित की है। इस प्रकार गोमटेश्वर सम्बन्धी जानकारी लुप्त
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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