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________________ श्रवणबेलगोल / 239 निकलीं। सभी आश्चर्य से मौन थे। वृद्धा नीचे उतरी और देखते ही देखते भीड़ में न जाने कहाँ अदृश्य हो गई। चामुण्डराय ने फिर अपने गुरु से इस आश्चर्य का कारण पूछा। उन्होंने बताया कि मूर्ति के निर्माण से चामुण्डराय को कुछ गर्व हो गया था। उसी को दूर करने के लिए कूष्माण्डिनी देवी ने बुढ़िया का रूप धारण कर यह आश्चर्य प्रकट किया है। चामुण्डराय एकदम विनम्र जीवन जीने लगे। कहते हैं उन्होंने ही गुल्लिकायज्जी की मूर्ति बनवाई थी। गोमटेश्वर की इस अद्वितीय मूर्ति की प्रतिष्ठा किस दिन हुई थी, इसका ठीक-ठीक प्रमाण नहीं मिलता । कन्नड़ कवि दोडय्य ने 1550 ई. में 'भुजबलि (बाहुबली)चरित' काव्य में लिखा है कि इसकी प्रतिष्ठा चैत्र शुक्ल पंचमी कल्कि संवत् 600 में हुई थी । सम्भवतः उनके समय में कोई प्रमाण उपलब्ध रहा हो। जो भी हो, विद्वानों ने दसवीं सदी और ग्यारहवीं सदी के अनेक वर्ष सुझाए हैं। किन्तु अब श्री एम. गोविन्द पै और स्व. श्री नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य का यह मत प्रायः सभी विद्वानों को स्वीकार है कि इस मूर्ति की प्रतिष्ठा 13 मार्च 981 ई. को हुई थी। धर्मपरायण चामुण्डराय को अनेक धार्मिक उपाधियों से विभूषित किया गया था। सदा सत्य बोलने के कारण उन्हें 'सत्य युधिष्ठिर' कहा जाता था। धार्मिक गुणों के कारण वे 'सम्यक्त्वरत्नाकर' और साधर्मी बन्धुओं के लिए 'अण्णा' (पिता) थे। ये उपाधियाँ इस समरशूर के धर्मपूर्ण जीवन को सूचित करती हैं। बाहबली की विशाल प्रतिमा के अतिरिक्त चामुण्डराय ने अनेक मन्दिर-मतियों एवं स्तम्भों का निर्माण कराया जैसे—(1) चन्द्रगिरि पर नेमिनाथ मन्दिर या चामुण्डराय बसदि, (2) विन्ध्यगिरि पर त्यागद ब्रह्मदेव स्तम्भ (3)अखंड बागिलु (विन्ध्यगिरि) और (4) ब्रह्मदेव स्तंभ तथा (5) गुल्लिकायज्जी की मूति । इन सबका परिचय श्रवणबेलगोल 'वंदना-क्रम' में यथास्थान दिया जाएगा। शस्त्र, शास्त्र और शिल्प में उत्तरोत्तर वृद्धिंगत, शिखरचुम्बो कीति को प्राप्त चामुण्डराय, जिनका नाम आज भी और पिछले युगों के लाखों जन को स्मरण रहा और है, का 990 ई. में देहावसान हो गया। चामुण्डराय का सम्पूर्ण परिवार ही अत्यन्त धार्मिक था। उनकी माता काललदेवी और पत्नी अजितादेवी तो गोमटेश्वर-निर्माण गाथा के साथ जुड़ी हुई हैं ही, उनकी छोटी बहन पुल्लब्बे ने भी विजयमंगलम् (कोयम्बटूर ज़िला) की चन्द्रनाथ बसदि में सल्लेखना विधि द्वारा शरीर त्यागा था। उनके पुत्र जिनदेव ने भी श्रवणबेलगोल की चामुण्डराय बसदि की ऊपरी मंजिल बनवाकर उसमें तीर्थंकर नेमिनाथ की प्रतिमा स्थापित करायी थी। विशालकाय गोमटेश्वर-मूर्तियों को परम्परा चामुण्डराय ने गोमटेश्वर की उत्तुंग प्रतिमा क्या निर्माण कराई, विशालकाय मूर्तियाँ बनवाने की एक नयी परम्परा ही प्रारम्भ कर दी। कर्नाटक की इस प्रकार की बहुत ऊँची प्रतिमाओं का यहाँ उल्लेख किया जाता है (विवरण सम्बन्धित स्थान के अन्तर्गत देखिए)। कारकल में गोमटेश्वर की लगभग 42 फीट ऊँची (41 फीट 5 इंच) प्रतिमा 1432 ई. में 13 फरवरी को पहाड़ी पर दूर से लाकर प्रतिष्ठित की गई।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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