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________________ श्रवणबेलगोल / 233 थोड़े ही समय में उन्होंने श्रुत का सम्पूर्ण ज्ञान प्रात कर लिया। यह कार्य सम्पन्न होने के बाद गोवर्धनाचार्य दिवंगत हो गए। अब तक भद्रबाहु एक महान् योगी के रूप में पूज्य हो चुके थे । वे धर्म का उपदेश देकर सभी का आत्मकल्याण करने लगे । कालान्तर में विहार करते हुए वे अवन्ती प्रदेश की उज्जयिनी नगरी में सिप्रा नदी के तट पर उपवन में पधारे। वहीं इन महामुनि के दर्शन नरेश्वर चन्द्रगुप्त ने किए। इससे आगे की कथा 'चन्द्रगुप्त प्रकरण' में लिखी जा चुकी है । भद्रबाहु के चरित्र का वर्णन संस्कृत के "बृहत्कथाकोष', 'भद्रबाहुचरित्र', और कन्नड के 'मुनिवंशाभ्युदय', 'वड्डाराधने' और 'राजावलिकथे' में वर्णित है । सम्राट् चन्द्रगुप्त के बाद उनके पुत्र बिन्दुसार और उनके पुत्र अशोक (महान्) हुए । अशोक के पुत्र कुणाल के अन्धे कर दिए जाने पर, कुणाल के पुत्र सम्प्रति ने लगभग 50 वर्ष तक शासन किया। इस अवधि में उसने बहुत से स्तम्भों पर लेख खुदवाए एवं राज्य के विभिन्न भागों में जिनमन्दिर बनवाए, विशेषकर राजस्थान और सौराष्ट्र में। उज्जैन में उसका पुत्र शालिशुक राजा हुआ। उसने और उसकी संतति ने ईसा पूर्व 164 तक राज्य किया । उसके बाद वहाँ मौर्य वंश का अन्त हो गया । इसी प्रकार मगध में अन्तिम मौर्य राजा ब्रहद्रथ की उसके ब्राह्मण मन्त्री पुष्पमित्र शुंग ने हत्या कर दी और वहाँ भी मौर्य साम्राज्य का अन्त हो गया । मौर्य साम्राज्य के बाद, कर्नाटक प्रदेश प्रतिष्ठानपुर ( पैठन) के सातवाहन राजाओं के अधिकार में ईसा की पहली शताब्दी में आ गया। तीसरी शताब्दी में यह क्षेत्र बनवासि के कदम्बों के शासन में आया । किन्तु 350 ई. के आस-पास जैनाचार्य सिंहनन्दि की सहायता से गंगवंश का शासन भी कर्नाटक में प्रारम्भ हुआ। इस वंश ने 1040 ई. तक प्रभावी ढंग से राज्य किया । इसी वंश के शासक राचमल्ल के मन्त्री एवं सेनापति चामुण्डराय ने 981 ई. में बाहुबली की विशाल प्रतिमा श्रवणबेलगोल में प्रतिष्ठित कराई। गंगवंश के बाद श्रवणबेलगोल का सम्बन्ध अन्य राजवंशों जैसे राष्ट्रकूट, होय्सल, विजयनगर, मैसूर के ओडेयर शासकों तथा कर्नाटक की वर्तमान प्रजातन्त्रीय शासन व्यवस्था से भी रहा है । इसका उल्लेख यथास्थल इस पुस्तक में किया गया है। गंगराज राचमल्ल के मन्त्री एवं सेनापति चामुण्डराय गोमटेश्वर की विशाल प्रतिमा प्रतिष्ठापित करानेवाले महापुरुष चामुण्डराय थे । ये गंगवंशी राजा राचमल्ल के मन्त्री एवं सेनापति थे । गंगवंश के राजाओं ने मैसूर (महिषमण्डल) और उसके आस-पास के प्रदेशों पर लगभग एक हज़ार वर्ष तक राज्य किया और जैनधर्म के प्रचारप्रसार के साथ ही अनेक जिनमन्दिरों आदि का निर्माण कराया था। इनका शासन कर्नाटक में जैनधर्म का स्वर्णयुग माना जाता है । इस प्रख्यात वंश की स्थापना एवं अन्य धार्मिक कार्यों का उल्लेख अनेक शिलालेखों एवं ताम्रपत्रों में पाया जाता है । शिमोगा जिले के कल्लूगुड्ड के सिद्धेश्वर मन्दिर के 1121 ई. के एक लम्बे शिलालेख में जैनाचार्य सिंहनन्दि द्वारा इस वंश की स्थापना एवं उसके उत्तराधिकारियों का उल्लेख पाया जाता है। उसके अनुसार यह वंश मूलरूप
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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