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________________ हलेबिड | 217 उत्कीर्ण हैं। इन्हें देखकर ही दर्शक मंत्रमुग्ध रह जाता है। गर्भगृह में भी सुन्दर नक्काशी है। केन्द्र में ताण्डवेश्वर (शिव) हैं। उनके साथ नाचतेगाते भक्तजन भी उत्कीर्ण हैं। मन्दिर तारकाकृति है। इस कारण दीवाल कई कोण बनाती है। इसलिए कलाकार को अपनी कला प्रदर्शित करने का बहुत सुन्दर अवसर मिला है । मन्दिर की दीवाल वैदिक या हिन्दू देवी-देवताओं, उनके प्रतीकों आदि का एक विशाल संग्रहालय बन गई है। वे सभी सन्दर भूषा में और बहुत स्पष्ट अंकित किए गए हैं। दीवाल में जालीदार खिड़कियाँ प्रकाश, हवा आदि के लिए बनाई गई हैं किन्तु इन खिड़कियों का स्थान लिया है विभिन्न देवी-देवताओं, अप्सराओं और नर्तकियों या सुन्दरियों ने। लगभग 400 फट में पौराणिक देवी-देवता उत्कीर्ण किए गए हैं। शिव के घुटनों पर बैठी पार्वती चौदह बार अंकित की गई है। विष्णु के अवतार भी अनेक बार प्रदर्शित हैं। यही स्थिति ब्रह्मा की है। शायद ही कोई प्रमुख देवता ऐसा बचा हो जिसका अंकन यहाँ नहीं किया गया है। यही कारण है कि पर्सी ब्राउन जैसे पुरातत्त्वविद् ने इस मन्दिर को मनुष्य द्वारा निर्मित सुन्दर स्मारकों में एक बताया है (One of the most remarkable monuments ever produced by the hand of man)। कहा जाता है कि यहाँ होयसल शिल्प-कला अपनी पराकाष्ठा को पहँच गई और वास्तुजगत् में उसने 'होयसल कला' नाम से अपनी एक अलग ही पहचान बना ली। उपर्युक्त मन्दिर का प्रमुख शिल्पी 'दारोज' बताया जाता है। मन्दिर मोहक एवं दर्शनीय है। किन्तु यह समाधान नहीं मिल पाता कि तथाकथित वैष्णव होयसलनरेश शैव भी हो गए थे अथवा नहीं। वैसे यहाँ कृष्ण को विशाल कलिंग सर्प के मस्तक पर नृत्य करते हुए भी चित्रित किया गया है। जो भी हो, देश-विदेश के अनेक कला-मर्मज्ञ एवं साधारण पर्यटक प्रतिदिन इस मन्दिर को देखने के लिए आते हैं। संग्रहालय होय्सलेश्वर मन्दिर के प्रांगण में भारतीय पुरातत्त्व विभाग का एक खुला संग्रहालय भी है। उसमें अन्य धर्मों की मूर्तियों के अतिरिक्त अनेक जैन मूर्तियाँ भी हैं। ढेरों शिल्प-कृतियाँ जमीन पर पड़ी हैं। इनमें तीर्थंकर मूर्तियाँ भी हैं। उनमें पद्मासन तीर्थंकर और सिरदल पर एक पद्मासन मूर्ति भी है । लगभग 16 फुट ऊँची एक तीर्थंकर प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में यहाँ एक छोटे से गोल उद्यान में खड़ी है। उसके हाथ कुहनी से टूटे हुए हैं। वह छत्रत्रयी, चँवर और मकर-तोरण से संयोजित है। मस्तक के दोनों ओर यक्ष-यक्षी हैं। आसन सिंह से विभूषित है। मूर्ति के दोनों ओर सुन्दर नक्काशीदार एक-एक स्तम्भ है । एक वीरगल या वीर-स्मारक यहाँ रखा है। उसके तीन खण्ड हैं। सबसे ऊपर के खण्ड में सूर्य-चन्द्र और पद्मासन तीर्थंकर (उनके आसन पर सिंह उत्कीर्ण हैं) और भक्त महिला एवं पुरुष हैं। बीच के खण्ड में, पालकी में हाथ जोड़े एक पुरुष है और उसके दोनों ओर देवियाँ हैं (वीर को स्वर्ग लिये जाने का दृश्य)। सबसे नीचे के खण्ड में तीर चलाता पुरुष उत्कीर्ण है । उसका एक अन्य योद्धा से युद्ध हो रहा है। लगभग ढाई फुट ऊँची पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में एक छत्र से विभूषित मूर्ति है जिसके
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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