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26 | भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
ओडेयर वंश से सम्बन्धित सबसे प्राचीन शिलालेख 1634 ई. का है। उसमें उल्लेख है कि जिन महाजनों ने श्रवणबेलगोल की जमीन-सम्पत्ति गिरवी रख ली थी, उसे तत्कालीन मैसूरनरेश चामराज ओडेयर ने स्वयं कर्ज चुका कर छुड़ाने की घोषणा की। इस पर महाजनों ने भूमि आदि कर्ज़ से स्वयं मुक्त कर दी। इस पर नरेश ने शिलालेख लिखवाया कि जो कोई भी इस क्षेत्र की जमीन गिरवी आदि रखने का कार्य करेगा वह महापाप का भागी होगा और समाज से बहिष्कृत माना जाएगा।
'मुनिवंशाम्युदय' नामक एक कन्नड़ काव्य में वर्णन है कि मैसूरनरेश चामराज श्रवणबेलगोल पधारे और उन्होंने गोम्मटेश्वर के दर्शन किए। उन्होंने चामुण्डराय आदि से सम्बन्धित लेख पढ़वाये, वे सिद्धर बसदि गए और उन्होंने कर्नाटक के जैनाचार्यों की परम्परागत वंशावली सुनी और पूछा कि आधुनिक गुरु कहाँ हैं । जब उन्होंने यह जाना कि चन्नरायपट्टन के सामन्त के अत्याचारों के कारण गोम्मटेश्वर की पूजा बन्द कर गुरु भल्लातकीपुर (आजकल के गेरुसोप्पे) चले गए हैं तो उन्होंने सम्मानपूर्वक गुरु (भट्टारक जी) को श्रवणबेलगोल बुलवाने का प्रबन्ध किया और दान देने का वचन दिया। उन्होंने किया भी वैसा ही और चन्नरायपट्टन के सामन्त को हराकर पदच्युत कर दिया।
शिलालेख है कि चिक्कदेवराज ओडेयर ने कल्याणी सरोवर का निर्माण या जीर्णोद्धार करवाया था तथा उसका परकोटा बनवाया था। उन्होंने 1674 ई. में जैन साधुओं के आहार के लिए भट्टारकजी को मदने नामक गाँव भी दान में दिया था।
उपर्युक्त नरेश के उत्तराधिकारी कृष्णराज ओडेयर ने श्रवणबेलगोल के भट्टारक जी को अनेक सनदें दी थीं जो उनके वंशजों द्वारा मान्य की गयीं। उनमें 33 मन्दिरों के व्यय एवं जीर्णोद्धार के लिए तीन गाँव दान में दिए जाने का उल्लेख है।
मैसूरनरेश कृष्णराज ओडेयर चतुर्थ भी श्रवणबेलगोल आए थे और उन्होंने नवम्बर 1900 ई. में अपने आगमन के उपलक्ष्य में अपना नाम चन्द्रगिरि पर खुदवा दिया था जो अभी भी अंकित है।
मैसूर-नरेशों की गोम्मटेश्वर-भक्ति का विशेष परिचय अनेक पुस्तकों में उपलब्ध है।
टीपू सुल्तान
हैदर अली और टीपू सुल्तान ने भी अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टन से राज्य किया। उन्होंने भी श्रवणबेलगोल के मन्दिरों और गोम्मटेश्वर की मूर्ति को हानि नहीं पहुंचाई। टीपू सुल्तान ने तो गोम्मटेश्वर को नमन भी किया था।
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद
मैसूर के ओडेयर वंश की सत्ता समाप्त होकर प्रजातान्त्रिक कर्नाटक सरकार बनी। उसके मुख्यमन्त्रियों सर्वश्री निजलिंगप्पा, देवराज अर्स और श्री गुण्डराव ने गोम्मटेश्वर के महामस्तकाभिषेक आदि में जो सहर्ष सहयोग दिया वह स्मरणीय है । एक हजार वर्ष पूर्व होने पर तो भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने भी महामस्तकाभिषेक के अवसर पर गोमटेश के प्रति अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित किए थे।
वर्तमान में भारत सरकार का पुरातत्त्व विभाग और कर्नाटक सरकार का पुरातत्त्व विभाग, धारवाड़ विश्वविद्यालय कर्नाटक के जैन स्मारकों में वैज्ञानिक ढंग से सहर्ष सक्रिय सहयोग प्रदान कर रहे हैं। कुछ स्मारक, प्राचीन मूर्तियाँ, शिलालेख आदि तो इन्हीं के कारण सुरक्षित रह गए हैं । ये सभी संस्थान जैन समाज की विपुलप्रशंसा के पात्र हैं।