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________________ 192 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) है। नीचे हाथी प्रदशित हैं और उसे खींचने के लिए घोड़े बने हए है। ___ अन्नपूर्णा-श्री हेग्गडेजी के निवास स्थान के पास उनका (क्षेत्र का) बहुत बड़ा कार्यालय, भण्डारगृह और 'अन्नपूर्णा' नामक विशाल भोजनालय है। यह भोजनशाला हजारों व्यक्तियों को भोजन बनाने और खिलाने की एक आश्चर्यकारी संस्था है । यहाँ भाप से 25 किलो चावल दस मिनट में बन जाता है। चावल का अतिरिक्त पानी बोल्ट ढीले करके निकाल दिया जाता है। चावल बनाने के लिए तीन फुट x तीन फुट व्यास के आठ स्टेनलेस स्टील के ड्रम हैं। शाकसब्जी और सांभर के लिए पांच फुट x पाँच फुट व्यास के यन्त्र हैं जिनमें ये सब चीजें भाप से बनती हैं। हाथ-ठेलों में भरकर चावल परोसा जाता है । और बड़ी-बड़ी टोकरियों में यन्त्र से निकालकर इकटठा किया जाता है। क्या कोई विश्वास कर सकता है कि श्री हेग्गडेजी की इस भोजनशाला में प्रतिदिन लगभग दस हजार व्यक्ति निःशुल्क भोजन करते हैं । इनमें स्कूलों के छात्र भी होते हैं। आसपास के गरीब लोग जून, जुलाई, अगस्त और 15 सितम्बर तक (यानी बरसात में) प्रायः यहाँ आकर प्रतिदिन भोजन करते हैं। उनके पास इन दिनों काम नहीं होता। उनके इस प्रकार भोजन करने पर कोई आपत्ति नहीं करता। सोमवार के दिन भोजन करनेवालों की संख्या पन्द्रह हजार और मेले के समय चालीस हज़ार तक होती है। प्रसंगवश यह भी उल्लेखनीय है कि श्री हेग्गडेजी की ओर से प्रतिवर्ष निर्धन महिलाओं को साड़ियाँ बाँटी जाती हैं । सन् 1985 ई. में 43 हजार साड़ियाँ वितरित की गई थीं। क्षेत्र ने एक तहसील को भी अपना लिया है और गाँव के गरीबों की हर प्रकार से मदद की जाती है । क्षेत्र की ओर से सामूहिक विवाह का जो आयोजन किया जाता है उसमें वर-वधू को एक धोती, एक शॉल, एक साड़ी-ब्लाउज, चाँदी की चेन, सोने का मंगलसूत्र, दिए जाते हैं और वर पक्ष के दस तथा वधू पक्ष के दस आदमियों को भोजन कराया जाता है। अन्नपूर्णा के पीछे एक प्राचीन गणेश-मन्दिर भी है। यहाँ के संग्रहालय और उसके पास के उद्यान के निकट की दुकानें पार करके नेत्रावती नामक आधुनिक धर्मशाला, उसके बाद चार मंज़िल ऊँची वैशाली नाम आधुनिक धर्मशाला और उससे आगे शरावती नामक चार मंज़िला होटल है । और उसी के पास है 'नेत्याडि बीडु' नामक पुरातन हेग्गडे-निवास।। चन्द्रनाथ स्वामी मन्दिर-उपर्युक्त निवास से लगे हुए एक टीले पर है 'श्री चन्द्रनाथ मन्दिर'। वहाँ जाने के लिए 30 सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं। मन्दिर का प्रांगण बड़ा है और उसके आसपास लाल बलुए पत्थर की दीवाल है। यह प्राचीन मन्दिर है । इसकी छत ढलुआ और कवेलू (टाइल्स) की हैं । गर्भगृह के ऊपर छोटा-सा कलश है। मन्दिर की मुंडेर से दो अभयहस्त लटकते दिखाई देते हैं । सबसे ऊपर कीर्तिमुख है। मुख्यमण्डप छ: स्तम्भों पर आधारित है। मन्दिर के प्रवेशद्वार पर ऊँ लिखा हुआ है। उसकी चौखट पर पीतल जड़ा है। मन्दिर में एक प्रकार से पाँच प्रकोष्ठ हैं । गर्भगृह और उसके सामने के चारों प्रकोष्ठों में प्रतिमाएँ हैं । बीस-बाइस फुट चौड़े इस प्राचीन छोटे-से मन्दिर की चौबीसी के मूलनायक धर्मनाथ हैं । गर्भगृह सहित पाँचों प्रकोष्ठों में सुन्दर प्रतिमाएँ हैं। प्रथम कोष्ठ में ही चौबीसी है। गर्भगृह में मूलनायक चन्द्रप्रभ की
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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